रौशनी
इस अंधविश्वास की नगरी में अंधेरा ही अंधेरा है,
जो खोला आंख मैंने, तो देखा कि यहां सवेरा है।
ढूंढना चाहा मैंने भी अपनों के बीच अपने आप को,
उम्मीद की रोशनी आई, तो देखा कि यहां अंधेरा है।
इस दुनिया के मेले में, सभी का अलग किरदार है
इस मेले में मेरा तो, बस अपनों के दिल में बसेरा है।
चल दिया है यूं , मैं भी अब मोहब्बत की गली में
कुछ दूर था उजियारा, मगर आगे अंधेरा ही अंधेरा है।
जब दुनिया की चकाचौंध में गुम होकर “शिवा” ने,
देखा चारों ओर, तो लगा कि झूठ का बस्ती घनेरा है।