आईना

बेहतरीन हिन्दी कविता

आईना

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आईना तो बस नज़र का धोखा हैं। नज़र वही आता हैं जो दिल में होता हैं।।

आईना तो बस नज़र का धोखा हैं।

नज़र वही आता हैं जो दिल में होता हैं।।

आईना तुमको देखूँ कैसे, समय नहीं मिल पाता है।

दुनियादारी के चक्कर में कुछ भी रास न आता है,

आईना तुमको देखूँ कैसे, सच्चाई बतलाते हो।

जो कुछ भी करती हूँ मैं तुम चेहरे पर दिखाते हो।

आईना तू ही  भेद बताता, समझ नहीं मैं पाती हूँ।

भाव छुपे हैं जो भी मन में चेहरे पर झलकाती हूँ।

आईना झूठ नहीं कहते तुम, सच्चे भेद बताते हो।

दिल के सारे राज खोलकर सच्ची राह दिखाते हो।

            ✍प्रिया गुप्ता

हिन्दी कवियित्री

✍प्रिया गुप्ता

दार्जीलिंग, पश्चिम बंगाल

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