कविता और शायरी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं! हिंदी में लिखी गई एक कविता को उर्दू में कविता कहा जाता है, इसे शायरी कहा जाता है। यहां आपको देशभक्ति शायरी, प्रेम शायरी, प्रेरक शायरी, माँ की शायरी, आदि मिलती है।
आशा का एक नया दिन कदम रुकते नहीं मेरे मंजिल की ओर बढ़ते समय सांसे थमती नहीं ,मेरी कोशिश करते समय । गिरती हूं ,भटकती हूं झुकती हूं,खोजती हूं पर हिम्मत नहीं टूट पाती है,मेरी सपना झुक नहीं पाती है,मेरी ताने मिलते है,मुझे सारे दर्द सह लेती हूं बाद में मैं ही गलत कहलाती हूं। लोगों का कहना है, कि कोयला नहीं बन सकता है ,हीरा रगड़ा है,जिसने खुद को वो बन जाता है ,कुदरत का हीरा। मेहनत करना है ,तब तक जब तक कि पा ना लु उस मंजिल को हौसला तोड़ेंगे लोग पर हिम्मत बुलंद होगी मेरी पा लूंगी उस मंजिल को अपने संघर्ष से
23 मार्च शहीद दिवस 2021 के उपलक्ष्य में मीनाक्षी कौर द्वारा रचित बहुत शानदार कविता “कोई चाँद तो कोई तारा होगा” । आपका दिल जीत लेगी।
23 मार्च शहीद दिवस 2021 के उपलक्ष्य में मीनाक्षी कौर द्वारा रचित बहुत शानदार हिंदी कविता “कोई चाँद तो कोई तारा होगा” । आपका दिल जीत लेगी।
कोई चांद तो कोई तारा होगा
उनको भी बड़े नज़ो से पाला होगा। अपनी-अपनी माँ की आंखो का, कोई चांद तो कोई तारा होगा। छोटे-छोटे नन्हे पांव से चलकर, जब वो दूर तक घर की गलियो में, भागा होगा। गिर ना जाये इस डर से, कई बार उन माँ-ओ ने भी, गोदी तक से। उनको यू भी, ना उतारा होगा। देखे होगे उन बूढ़े-माँ बाप ने भी, कई सपने, अपने राज दुलारो के लिये उनको क्या मालूम था, की वो आजादी का , क्रांती का देश-भगती का एक उगता,चमकता सितार होगा। जिसकी कुर्बानी को याद करेगी दुनिया ता-उमर, वो शहीद वीर जवानो का काफिला सुखदेव,भगत सिंह,राजगुरु का होगा।
शाहिद दिवस के उपलक्ष्य पर मीनू गोयल की ये पंक्तियां आपको अंदर तक हिला देंगी। हम क्या से क्या हो गए हमे बता देंगी।
एक बहुत छोटा सा नन्हा सा शब्द ही तो है
पर प्रभाव ,भूमिका, तत्परता, देशभक्ति, शौर्य, त्याग
की पराकाष्ठा से ओतप्रोत है।
जब छोटी थी ,शहीद का नाम हो और भगत सिंह
का नाम याद ना आया हो यह कभी नहीं हुआ।
एक पुलक सी, सिहरन सी रगों में दौड़ जाती थी
जब देशभक्ति के दीवानों की कहानी सुनाई जाती थी।
आज के परिप्रेक्ष्य में और नई पीढ़ी के विचारों की बात की जाए तो उनकी नजर में शहीद एक सामान्य सा शब्द होकर रह गया है। उन्हें लगता है शहादत कोई भी दे सकता है, कितनी गलत सोच और भावनाएं हैं पर इन सब के लिए कहीं ना कहीं हम सब ही तो दोषी हैं। संयुक्त परिवार टूटे परंपराएं टूटी देश प्रेम की कहानी छूट गई धर्म और देश अभिमान बस कथाओं और इतिहास में छिप कर रह गया
कहीं कोई आंदोलन हो रहा, कहीं जाम लग रहे, कुछ भी गलत हो रहा और वहां कोई किसी भी कारण से अगर मृत्यु को प्राप्त कर लेता है तो “शहीद हो गया” की हेड लाइन के साथ अखबार की सुर्खियां छ्प जाती हैं कोई फर्क नहीं पड़ता
अभी शहीद शब्द को पढ़कर ना अश्रु धारा ना संताप
ना पूजा ही फड़कती है ना श्रद्धांजलि दी जाती है
शहीद एक शब्द ही तो नहीं है, भगत सिंह और
उनके साथियों की कुर्बानी है।
हर भारतवासी की सीने में जलती आजादी की चिंगारी है।
अभिभूत हो जाती हूं मैं जब इनकी वीरता और देशभक्ति के जज्बे से भरी इनकी जीवनी पढ़ती हूं। सारे सुखचैन, घर परिवार, रिश्ते- नाते किसी भी सांसारिक सुख से जो नहीं भरमाए l बस भारत माता और स्वतंत्रता जिनका सिरमोर थी ।धन्य है वे शहीद और उनकी शहादत।
अंत में इतना ही कहूंगी,
जन -जन के मानस में क्रांति की मशाल जलाने वाले थे,
कैसे भूलू उनकी शहादत
वह मेरे देश की शान के रखवाले थे।
इंकलाब जिन्दाबाद।
हिन्द के शहीद सुरेश जाट द्वारा रचित कविता शहीद दिवस के उपलक्ष पर “हिन्द के शहीद” देश प्रेम से ओतप्रोत ये कविता आपको भावुक कर देगी और आप मे जोश भर देगी।
हिन्द के शहीद सुरेश जाट द्वारा रचित कविता “हिन्द के शहीद” देश प्रेम से ओतप्रोत ये कविता आपको भावुक कर देगी और आप मे जोश भर देगी।
हिंद के शहीद
शहादत की लिखी अजब कहानी थी,
मर मिटने को आतुर गजब जवानी थी।
जलियांवाले से दिल दहल उठा, लालाजी की मृत्यु पर युवा आक्रोश बढ़ा।
तूफान रक्त में वीरों के अंतर्मन ज्वार उठा, भगत सिंह सुखदेव राजगुरु से ब्रिटिश हुकूमत में हाहाकार उठा।
किंचित नहीं भयभीत हुए-
मातृभूमि प्राणों से प्यारी थी, जोश भरी कुर्बानी न्यारी थी।
खाकर कसम निकले थे घर से-
इंकलाब का बिगुल बजाकर, बहरों को गूंज सुनाएंगे।
देकर लहू हिंद वतन को, इंकलाब की आंधी लाएंगे।
कर्ज चुका कर जन्मभूमि का, हंसकर मौत गले लगाएंगे।
मरकर भी हर दिल में जिन्दा होंगे , आजाद वतन हम लाएंगे।
सौगंध जननी को आंसू नहीं बहायेगी , इस माटी में सैकड़ों भगत सिंह बन जाएंगे।
रंग दे बसंती गाकर मस्त हुई जवानी थी, शहादत वीरों की सुनकर युवा पीढ़ी हुयी दीवानी थी।
पहन बसंती चोला शहादत को झूम उठे, हिंदुस्तानी कंठ से इंकलाब के नारे गूंज उठे।
बोकर बीज राष्ट्रप्रेम के हिंद सितारे अस्त हुए, प्रेरणा से अंकुरित देशभक्त बसंती चोला पहन मस्त हुए।
फौजी का पैगाम अंकित राही द्वारा रचित कविता शहीद दिवस के उपलक्ष पर। एकदम न कहना घरवालों से, देश प्रेम से ओतप्रोत ये कविता आपको भावुक कर देगी।
फौजी का पैगाम
एकदम न कहना घरवालों से
उलझाए रखना उनको सवालों से
एकदम न कहना घरवालों से
उलझाए रखना उनको सवालों से
लौट के वो आएगा शहीद वो कहलाएगा
न बुझाओ तुम पहेली
सच बताओ क्या मेरे लाल ने गोली है झेली
मैं हाल हाल-ए-दिल बतलाऊंगा
तिरंगे में लिपटा आपका लाल आएगा
धीरज रखो पापा जी शहीद वो कहलाएगा
मैं तो धीरज रखू पर मेरी पत्नी को कौन सहलाएगा
बहू का सिंदूर कौन लाएगा
बेटी का वीर कहां से आएगा
ए मेरे देश यह सिलसिला कब तक यूं ही नजर आएगा
धीरज रखो पापा जी शहीद वो कहलाएगा
कवि अंकित राही
शहीद दिवस के उपलक्ष पर अंकित राही द्वारा रचित कविता “फौजी का पैगाम” देश प्रेम से ओतप्रोत ये कविता आपको भावुक कर देगी। comment करके हमें जरूर बताएं की आपको कविता कैसी लगी और हमारे कवि साथियों का मनोबल बढ़ाते रहें।