संस्कृति – देश की पहचान
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “संस्कृति – देश की पहचान”, तुम लड़ते हो भाई- भाई में उसने दुश्मन को सम्मान दिया।
An Online Journal
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रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “संस्कृति – देश की पहचान”, तुम लड़ते हो भाई- भाई में उसने दुश्मन को सम्मान दिया।
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “हंसी के तराने”, यूँ न खड़ी किया करो शक की दीवारेंगलतफहमियां दूर करने के बहाने बहुत हैं।
किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए जो महत्वपूर्ण आवश्कताएं हैं , उस पर काफी मंथन करने के बाद मैंने उसे तीन श्रेणियों में बांटा है।
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “तू बहन नहीं ! देवी स्वरूप”, ख्वाहिश हो हर तेरी पूरी। मगर समझना तू भी मज़बूरी
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “नजरों के नश्तर से दिल घायल होते हैं”, नजरों के नश्तर से दिल घायल होते हैं,वे पागल होते हैं, जो याद में रोते हैं।
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “ढूंढ़ रहा हूं अपना गांव”, रहा नहीं वो बाग- बगीचा रहा नहीं कुआं -तालाब।
रौशन कुमार ‘प्रिय’ द्वारा रचित कविता “कर्म हैं सबके “, कौन कहता है,ये उल्फतों की दुनिया बड़ी दर्द भरी है,सुन के कांटो में गुलाब खिलखिलाने लगे।
“करवा चौथ” एक गर्व की अनुभूति दीपा गोमी की डायरी से। व्रत रखती तो मैं भी हूं पर इसलिए नहीं कि पति की आयु लंबी हो, वह दीर्घायु हो।
“अध्यापक दिवस” एक गर्व की अनुभूति दीपा गोमी की डायरी से। आज उम्मीद नहीं थी कि उनमें से कोई विश करेगा, किंतु ऑनलाइन संदेशों से लेकर फोन कॉल तक करने का जो सिलसिला शुरू हुआ। मैं बता नहीं सकती।
“स्लीवलेस” एक आपबीती दीपा गोमी की डायरी से। आज भी पहन कर बाहर निकलने में बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ी। दिल धाड धाड हो रहा था।