पहले अखबार छप कर बिकते थे आज कल बिकने के बाद छप रहे है।
अगर कोई बिल पास हो तो उसमे आपको ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। फायदा बताने के लिए सुधीर चौधरी और नुकसान बताने के लिए रवीश कुमार है ना।
काम सारे news channel एक ही जैसा कर रहे है बस इन्होंने गुट अपने अपने पकड़ रखे है।
बाहर के देशों में में सोशल मीडिया पर झूठ बोला जाता है, और main stream मीडिया उसे clear करती है। परंतु हमारे जहां main स्ट्रीम मीडिया में झूठ बोला जाता है और में social मीडिया उसे clear करती है।
आजादी से पहले सुभाष चन्द्र बोस और बाकी नेेेता घर घर नहीं गए थे अपनी आवाज़ पहुंचाने। वो जेल में भी थे तो भीे उन्होंने न्यूज पेपर के द्वारा अपने विचार लोगों तक पहुंचाए। इसलिए मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। अगर आज का मीडिया आजादी से पहले होता तो ब्रिटिश उसे खरीद चुके होते और हमें ये विश्वास दिला दिया जाता की ईस्ट इंडिया कम्पनी कितनी फायदेमंद है हमारे देश के लिए।
पूरे वर्ल्ड में इंडियन मीडिया 142 नंबर पर है । लेबनान और अफगानिस्तान जहां नियम कानूनों की धजियां उड़ी हुई है वो भी हम से आगे है ।
जब भी कोई घटना होती है तो एक journalist का काम होता है कि वो निरपक्ष हो कर पूरी जानकारी लोगों तक पहुंचाए। उसके बाद लोग ये तय करें कि क्या सही है और क्या ग़लत। अब समय ये है कि आपको ये समझाया जा रहा है, कि इस घटना से आप ये समझिए।
एक उदाहरण है।
मान लो आपके पास एक text आया जिस पर लिखा है कि आपकी एक करोड़ की लॉटरी लगी है और उसे पाने के लिए आपको 10000 रुपए जमा करने होंगे। तो आप करोगे? जाहिर सी बात है नहीं करोगे। आपको लगता है दुनिया में कोई भी ऐसा आदमी होगा जो करेगा। नहीं करेगा । पर आपको बता दूूँ, 500 करोड़ से भी ज्यादा रुपए का घाटा हुआ है लोगों को इस text की वजह से, तो ऐसे लोगों को ग़लत जानकारी दे कर वोट लेना कितना आसान होगा।
लोगों से वोट डलवाया जाता है।
लोगों को लगता है कि वो अपनी मर्जी से एक अच्छे प्रतिनिधि को वोट दे आए है। पर जिस जानकारी के वो बूते पर आपने ये सुनिश्चित किया है कि इस पार्टी के प्रतिनिधि को वोट देंगे, अगर वो जानकारी ही ग़लत हो तो। अगर आप ध्यान से समझें तो एक proper प्लैनिंग के तहत आपसे वोट डलवाया जा रहा है और आपको ये भ्रम है कि आपने अपनी मर्जी से वोट दिया।
कैसे मीडिया को चलाया जाता है ?
स्टीव मेनन जो की व्हाइट हाउस के स्ट्रेटिजिस्ट भी रहे है उन्होंने 2019 में एक बात कहीं थी। की सरकार का जो सही मायने में विपक्ष होता है वो मीडिया होता है और मीडिया से deal करने के लिए आपको ज्यादा सोचना नहीं है । आप मीडिया में कचरा भर दीजिए, लोगों का ध्यान सिर्फ कचरे पे रहेगा और आप अपना काम आसानी से कर सकते है।
वादविवाद खबर का सर्वे
official being human ने , जो इंडिया के टॉप 4 न्यूज चैनल है उनका कुछ दिन का डाटा निकाला तो उन्होंने जो वाद विवाद की है वो इसे थी।
- पाकिस्तान इस पे 79 debets
- विपक्ष पे 66 debet
- सरकार की प्रशंशा में 36 debet
- राम मंदिर 14 debet
- बेरोजगारी ज़ीरो debet
- राष्ट्र की सुरक्षा ज़ीरो debet
- किसान पे ज़ीरो
- अर्थवयवस्था पे ज़ीरो।
न्यूज़ शीर्षक
इनके शीर्षक भी कमाल के होते है।
- ये POK बापिस दे दे इमरान
- मेरे राम vs तेरे राम
- मोदी का प्रण पाकिस्तान का चीरहरण
- विपक्ष पड़ा है चक्र में कोई नहीं है टकर में।
- मोदी के 100 दिन vs विपक्ष के बुरे दिन।
जर्नलिज्म में बहुत मेहनत करनी पड़ती है । परंतु हमारे रिपोर्टर रिपोर्टर कम एक्टर ज्यादा लगते है ये लोग 4 लोगों को पकड़ के वादविवाद कराना शुरू कर देते है। आप ध्यान देना जो लोग ज्यादा हला करते है और ज्यादा चीखते है उन्हें ये बार बार बुलाते है।
बिकाऊ मीडिया
अब सब जानते है की भारतीय मीडिया बिका हुआ है तो उसके खरीदार भी होंगे। अब ऐसा तो नहीं है कि जो लोग सता में है उन्ही के पास पैसा है । पैसा तो सब के पास है जो हारे है उनके पास भी है। मतलब सब पार्टियों के पास पैसा है । अगर ना होता तो हर चैनल पे अलग अलग प्रोपेगेंडा चल रहे होते। आप नोटिस करोगे की जो भी प्रोपेगेंडा होता है सब में एक जैसा होता है लगभग ।
सभी चेन्नल पर एक जैसी न्यूज़ का कारण।
इसके पीछे भी कारण है । कुछ चुनिंदा लोग किसी देश के मीडिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते है। directly और indirectly अब भारत में कौन लोग है आपको नाम पता करना है तो www.rsf.org पर चेक कर सकते है। ये एक Non profit organisation है जिसने की सालों तक रिसर्च की ओर पता लगाया कि अलग देश में जो मीडिया हाउस है उन पर कौन कब्जा कर रहा है।
Advertise क्यों जरूरी है ?
एक चैनल को चलाने के लिए लगभग 100 करोड़ रुपए चाहिए। जो की बहुत महंगा है। और इनकी कमाई होती है ज्यादातर advertise से और इसलिए भी चैनल को चलते रहने के लिए एडवरटाइजमेंट जरूरी हो जाता है। 2019 के चुनाव में 25000 करोड़ से भी ज्यादा खर्च हुआ था advertisment पे। तो एक तरह से सरकार भी इनकी ग्राहक है। ओर कोई अगर अपने ग्राहक के विरुद्ध जाएगा तो उसकी दुकान बंद होना तय है।
मीडिया को काबू करने की संस्था।
भारतीय मीडिया के उपर कोई मॉनिटर करने वाला नहीं है अगर UK की बात करें तो वहां पे Office of Communication है। US में fedral Communication commission है लेकिन भारत में ऐसा कुछ नहीं है।
आपको मुद्दों की बात करनी होगी
तो अंत में बोलना चाहूंगा की किसी भी न्यूज पर आंखे मूंद कर विश्वास ना करें।
आप किसी भी पार्टी या गुट के हो सकते है मुझे उस में दखल नहीं देना । पर इन सब से आपका कोई फायदा नहीं होने बाला। आपका फायदा तब ही होगा जब आप सही मुद्दों पे बात करेंगे। प्राइवेट स्कूल मनचाही fee ले रहे है क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती। और तब तक नहीं होगी जब तक आप अपने मुद्दों पे खड़े नहीं होंगे।