मातृ छवि!

माँ आधारित कविता

जहाँ मैं अपने पग धरूँ , तहाँ मोरे सिर धरौ अपने हाथ ।
“क” कहि आवत नहीं, तौहरी कृपा का मोल नहिं ।
भविष्य भय जलावत मोहि, हुकुम तेही बचावत मोहि ।।

मातृ छवि!

अध्यापक – अध्यापिका मुझे बहुत मिले हैं ।

हे माता श्री गुरुवर आप जैसी कोई नहीं  ।।

पढ़े लिखे महाशय  डिग्रीधारी आजकल बनते हैं ।

कल्याणकारी सरस्वती आप  जैसी  कोई नहीं ।।

भविष्यरुपी रेलवे के लिए टी.सी बहुत मिले हैं ।

संयमी कुशाग्रबुद्धि चालक आप जैसी कोई नहीं  ।।

  विद्यालय बहुत दिखालाए गए हैं हमें ।

   लिटिल फ्लावर हाउस जैसा कोई नहीं  ।।

जहाँ मैं अपने पग धरूँ , तहाँ मोरे सिर धरौ अपने हाथ ।

“क” कहि आवत नहीं, तौहरी कृपा का मोल नहिं ।।

भविष्य भय जलावत मोहि, हुकुम तेही बचावत मोहि।

अध्यापक – अध्यापिका मुझे बहुत मिले हैं ।

हे माता श्री गुरुवर आप जैसी कोई नहीं  ।।

पढ़े लिखे महाशय  डिग्रीधारी आजकल बनते हैं ।

कल्याणकारी सरस्वती आप  जैसी  कोई नहीं ।।

भविष्यरुपी रेलवे के लिए टी.सी बहुत मिले हैं ।

संयमी कुशाग्रबुद्धि चालक आप जैसी कोई नहीं  ।।

  विद्यालय बहुत दिखालाए गए हैं हमें ।

लिटिल फ्लावर हाउस जैसा कोई नहीं  ।।

“अजय विषकर्मा “

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