स्त्रियां पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं?

स्त्रियां पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं?

इसके पीछे राजनीति है। स्त्रियां आकर्षक दिखना चाहती हैं, क्योंकि इसमें उन्हें ताकत मालूम होती है। वे जितनी आकर्षक होंगी उतनी पुरुष के आगे ताकतवर सिद्ध होंगी और ताकतवर कौन नहीं बनना चाहता? सारी जिंदगी लोग ताकतवर बनने के लिए संघर्ष करते हैं।

तुम धन क्यों चाहते हो ? क्योंकि उससे ताकत आती है। तुम बड़े-बड़े पद क्यों पाना चाहते हो? उससे ताकत मिलेगी। तुम महात्मा क्यों बनना चाहते हो? उससे ताकत मालूम होगी। लोग अलग-अलग उपायों से ताकतवर बनना चाहते हैं। तुमने स्त्रियों के पास, ताकतवर बनने का और कोई उपाय ही नहीं छोडा। उनके पास एक ही रास्ता है — उनके शरीर। इसलिए वे निरंतर अपना आकर्षण बढा़ने की फिक्र में होती हैं।

क्योंकि वह और तरह की सत्ता, राजनीति में शामिल हो रही है। आधुनिक स्त्री पुराने बंधनों से बाहर आ रही है। वह विश्वविद्यालयों में पुरुष को टक्कर देकर डिग्री प्राप्त करती है। वह बाजार में, व्यवसाय में, राजनीति में पुरुष के साथ संघर्ष कर रही है। उसे आकर्षक दिखने की बहुत फिक्र नहीं है।

पुरुष ने कभी आकर्षक दिखने की इतनी फिक्र नहीं की। क्यों ? क्योंकि उनके पास ताकत जताने के इतने तरीके थे कि शरीर को सजाना थोडा़ स्त्रैण मालूम पड़ता था। साज-सिंगार स्त्रियों का ढंग है ।

यह स्थिति सदा से ऐसी नहीं थी। अतीत में एक समय था जब स्त्रियां उतनी ही स्वतंत्र थी जितने कि पुरुष। तब पुरुष भी स्त्रियों की भांति आकर्षक बनने की चेष्टा करते थे।

कृष्ण को देखो, खूबसूरत रेशमी वस्त्र, सब तरह के आभूषण, मोर मुकुट, बांसुरी — उनके चित्र देखो, वे इतने आकर्षक लगते हैं। ये वो दिन थे जब स्त्री और पुरुष दोनों ही जो मौज हो, वैसा करने के लिए स्वतंत्र थे।

उसके बाद एक लम्बा अंधकारमय युग आया जब स्त्रियां दमित हुई। इसके लिए पंडित, पुरोहित और तथाकथित साधु, संत जिम्मेवार हैं। तुम्हारे संत सदा स्त्रियों से डरते रहे हैं। उन्हें स्त्री इतनी ताकतवर मालूम पड़ती है कि वे संतों का संतत्व मिनटों में नष्ट कर सकती हैं। तुम्हारे संतों की वजह से स्त्रियां निंदित हुईं। वे स्त्रियों से भयभीत थे इसलिए स्त्रियों को दबा दो।

जीवन में उतरने के, प्रवाहित होने के उनके सारे उपाय छिन गए। फिर एक ही चीज शेष रह गई, उनका शरीर। इसलिए वह तुम्हें आकर्षित करती है और अलग खडी़ होती है।  वह तुम्हें उकसाती है, उत्तेजित करती है और जब तुम पास आते हो तो इनकार कर देती है।

अब यह सीधा-सादा तर्क है। यदि वह हां करती है तो तुम उसे एक यंत्र बना देते हो, उसका उपयोग करते हो और यह कोई नहीं चाहता कि उसका उपयोग हो। यह उसी सत्ता, राजनीति का दूसरा हिस्सा है। सत्ता का मतलब है दूसरे का उपयोग करने की क्षमता और जब कोई तुम्हारा उपयोग करता है तब तुम्हारी ताकत खो जाती है।

तो कोई स्त्री भोग की वस्तु होना नहीं चाहती और तुम सदियों से उसके साथ यही करते आए हो प्रेम एक कुरूप बात हो गई है। प्रेम तो परम गरिमामय होना चाहिए लेकिन वह है नहीं। क्योंकि पुरुष स्त्री का उपयोग करता आया है और स्त्री इस बात को नापसंद करती है, इसका विरोध करती है स्वभावतः वह एक वस्तु बनना नहीं चाहती ।

इसलिए तुम देखोगे कि पति पत्नियों के आगे पूंछ हिला रहे हैं और पत्नियां इस मुद्रा में घूम रही हैं कि वे इस सबसे ऊपर हैं — पाक, पवित्र। स्त्रियां दिखावा करती रहती हैं कि उन्हें सेक्स में, घृणित सेक्स में जरा भी रस नहीं है।

वस्तुतः उन्हें उतना ही रस है जितना कि पुरुष को लेकिन मुश्किल यह है कि वे अपना रस प्रकट नहीं कर सकतीं अन्यथा तुम तत्क्षण उनकी सारी ताकत खींच लोगे और उनका उपयोग करोगे ।

तो स्त्रियां बाकी बातों में रस लेती हैं। वे आकर्षक बनेंगी और फिर तुम्हें इनकार कर देंगी। यही ताकत का आनंद है — तुम्हें खींचना, और तुम इस तरह खिंचे चले आते हो जैसे कच्चे धागे से बंधे हो ; और फिर तुम्हें ‘ना’ कहना। तुम्हें एकदम शक्तिहीन बना देना। तुम कुत्ते की तरह दुम हिलाते हो और स्त्री अपनी ताकत का आनंद लेती है।

यह पूरा मामला बडा़ कुरूप है। इसमें प्रेम सत्ता की राजनीति बनकर रह गया है। इसे बदलना होगा।

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