*** वाकिफ ***

हिन्दी की बेहतरीन कविता

वाकिफ

आज उसकी आदत से वाकिफ हो चुका, 
कुछ कहा नहीं लेकिन खुदा हाफिज हो चुका। 
मजबूर हो, मैं किसी को अपना मान चुका,
चलो किसी से तो वाकिफ हो चुका। 
उम्मीदों का सागर कहीं खो गया दिखता है,
मेरा हर एक आंसू सागर सा हो गया दिखता है। 
अपनी इस गलती का किसे जिम्मेदार ठहराऊ,
मैं खुद ही हूं इसका जिम्मेदार,यह हो गया दिखता है।
बातों से उलझने और बढ़ जाएगी,
हमारी बातें और उसे चुभ जाएगी। 
अब मैं उससे पूरी तरह वाकिफ हो चुका हूं,
कुछ कहा नहीं लेकिन खुदा हाफिज हो चुका हूं।

                 ✍जतीन चारण

हिन्दी कवि
जतीन चारण
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