माँ

हिन्दी कविता माँ

माँ

जब चोट हमें लगे तो आंखें उसकी भर जाती है,
जब आगे हम बढे तो हंसी उसके चेहरे पर छा जाती है। 
हर घड़ी वह हमारे साथ रहना चाहती है,
वह मां है तेरी बस तेरे पास रहना चाहती है।
हमको एक इंसान माँ ही तो बनाती है,
इस संसार में लाकर यह संसार हमें माँ ही तो दिखाती है। 
बाकी सभी तो अपना कह कर दूर हो जाते हैं,
बस एक माँ ही तो है जो हमें गले लगाती है। 

मैंने वक्त को गुजरते देखा है, बहुतों को बदलते देखा है। बहुतों की जिंदगी में, मां की कमी को खलते देखा है।

और कुछ नहीं बस,
वह तेरा साथ ही तो चाहती है। 
बुढ़ापे में तू बन जा उनका सहारा, 
बस वो यह बात ही तो चाहती है।
कभी मौका मिले माँ की सेवा करने का,
तो पीछे मत हटना मेरे दोस्त। 
क्योंकि नसीब वालों को ही यह नसीब होता है,
और मां की कीमत उनसे पूछ लेना,
जिनको माँ का साया तक नसीब नहीं होता है।
मैंने वक्त को गुजरते देखा है,
बहुतों को बदलते देखा है। 
बहुतों की जिंदगी में,
मां की कमी को खलते देखा है।
हिन्दी कवि

जतीन चारण

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