चुनाव प्रसार के दौरान नेताओं द्वारा जनता से किये जाने वाले वादों और चमचों की चमचागीरी पर रोहताश वर्मा उर्फ “मुसाफिर” द्वारा एक खूबसूरत व्यंग्य।
गाड़ियों की बयार
हर बार चली हर बार चली। देखो देखो हर बार चली।।
गली-गली और गांव-गांव में गाड़ियों की बयार चली।
अपनी अपनी गाड़ी ले जनता को बेवकूफ बनायेंगे।
विकास नाम पर जनता को मिथ्या स्वप्न दिखाएंगे।
एक - दूसरे की बरसों से देखना टांग खींचेंगे।
कुछ ठहरे हैं गांव में चमचे जो पैसों में बिकेंगे।
भोली जनता ताकेगी बस मानवता सब हार चली।
गाड़ियों की बयार चली।।
बोलो उसने क्या किया? मैंने क्या-क्या नहीं दिया?
कौन समझाए? कौन बताए बस किसानों का ही खून पिया।
जरुरत पर गधा बाप सा फिर कोई न जानेगा।
कौन हो तुम? किस गांव से? कहकर न पहचानेगा।
झूठे चेहरे, झूठे वादों की, घर - घर में बौछार चली।
गाड़ियों की बयार चली।।