दीपावली के पर्व में भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है?
दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा करना बहुत फलदायी माना जाता है। आपको बता दें कि माता लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य और वैभव की देवी माना जाता है। दिवाली से पहले शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव माना जाता है। इसलिए दिवाली के दिन इनकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
कार्तिक अमावस्या की इस पावन तिथि पर देवी लक्ष्मी अपने भक्तों पर अगर पूजा से प्रसन्न होती हैं तो वह अपने भक्तों पर समृद्धि और धन की वर्षा करती हैं। आपको बता दें कि ग्रंथों के अनुसार माता लक्ष्मी दिवाली से कुछ दिनों पूर्व शरद पूर्णिमा पर समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुई थी।
गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान
किसी भी कार्य को निर्विघ्न संपन्नता करते हैं, गणपति। दीपावली पर हम धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, लेकिन सब जानते हैं कि भगवान श्री गणेश विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि- सिद्धि के प्रदाता हैं, इसलिए हर शुभ कार्य के प्रारंभ में गणेश जी को प्रथम स्थान दिया जाता है।
श्री गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान प्राप्त है और यह वरदान स्वयं उनके पिता शिव ने प्रदान किया था। बिना गणेश पूजन किए कोई भी पूजा प्रारंभ नहीं की जाती है और न ही उन्हें स्वीकार हो पाती है।
सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य को आरंभ करते समय उसमें विघ्नों के आने की आशंका रहती है। विघ्न हर्ता गणेश जी का पूजन करने के बाद विश्वास हो जाता है कि अब वह कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न हो जाएगा। इसलिए लक्ष्मी पूजन से पूर्व गणेश पूजन किया जाता है।
लक्ष्मी और बुद्धि-विवेक
लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का सबसे बड़ा कारण यह भी है बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। ताकि धन के साथ बुद्धि भी सदा साथ रहे। जिससे उसका सदुपयोग किया जाए।
महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार
महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक बार माँ लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा-पाठ करता है और आपके प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माँ लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री माँ नहीं बन पाती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाती। आप निःसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। यह जानकर माँ लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ।
माँ लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माँ पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माँ लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माँ लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्रीगणेश को पाकर बहुत खुश हुईं। माँ लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा, लक्ष्मी उसके पास सदा के लिए रहेगी।
गणेशजी की मूर्ति की स्थान माँ लक्ष्मी की मूर्ति के बायीं ओर
माँ लक्ष्मी हमेशा अपने पुत्र के दाएं हाथ पर विराजती है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति की स्थान माँ लक्ष्मी की मूर्ति के बायीं ओर की जानी चाहिए।