स्टेम्प पेपर घोटाला (तेलगी Scam)

Stamp Paper Scam

1992 में जब हर्षद मेहता scam सामने आया तो इसमें कुछ 4000 करोड़ रूपये की खबर सामने आई थी। और ये उस समय देश का सबसे बड़ा घोटाला था। लेकिन सरकार और जांच एजेंसियां नहीं जानती थी कि उसी समय इससे भी बड़ा घोटाला जन्म ले चुका था। एक ऐसा घोटाला जिसकी चोट से भारत की अर्थव्यवस्था कई सालों के लिए गिरने वाली थी। ये घोटाला था नकली स्टेंप पेपर घोटाला। जिसे तेलगी Scam भी कहा जाता है।

तेलगी Scam (घोटाला)

आज से 20 साल पहले  देश में स्टेंप पेपर पर ऐसा घोटाला सामने आया, जिसने लोगों के पैरों तले से जमीन खींच ली। ये घोटाला 1992 के हर्षद मेहता घोटाले से भी बड़ा था। जिसने पुलिस, सरकारी दफ्तर और राजनीतिक पार्टियों के सभी काले चिट्ठे खोल कर रख दिए थे।

स्टेंप पेपर

आपने भी कभी कवार 10, 20, 50 या 100 रुपए वाले सरकारी स्टेंप पेपर का प्रयोग किया होगा या देखा  होगा।

स्टेंप पेपर दरअसल A4 size वाला एक कागज होता है। जिस पर सरकार की रेवेन्यू स्टेंप लगी होती है। इनका इस्तेमाल कोर्ट फीस, लीज़, agreement और बैंक आदि में होता है। यानी कि इन स्टेंप की कीमत भारतीय रुपये के बराबर होती है।

कोई भी चीज स्टेंप पेपर पर लिखने से जायज सबूत बन जाता है। जिन्हें आप कोर्ट, बैंक या सरकारी दफ्तरों में दिखा सकते हैं। खास कर 70 और 80 के दशक में हर छोटे बड़े काम को स्टेंप पेपर के जरिए ही किया जाता था।

मुखबिर से मिली खबर

किसी ने ये नहीं सोचा था कि अगर स्टेंप पेपर ही नकली बनने लग जाएं तो देश की अर्थव्यवस्था किस तरह बर्बाद हो सकती है। आजकल डिजिटल जमाना है तो ऐसा होना सम्भव नहीं है। मुंबई के एक क्राइम रिपोर्टर को उसके एक मुखबिर ने खबर दी। कि उसके पास 100 पेपर की एक रिपोर्ट है। जो देश का सबसे बड़ा घोटाला हो सकता है। उसके बाद जब इस घोटाले कि छानबीन हुई। तो 50 से 100 वाले स्टेंप पेपर ही नहीं 25 से 50 हजार वाले स्टेंप पेपर भी मिले, जो बैंक, PSUs और कोर्ट तक में circulate हो चुके थे।

बिना रोक टोक के चला धंधा

कोई भी सरकारी दफ्तर असली और नकली स्टेंप पेपर के बीच का अंतर नहीं समझ पा रहे थे। इसलिए नकली स्टेंप पेपर का ये धंधा बिना रोक टोक के 11 साल तक चलता रहा। जब इसकी तहकीकात शुरू हुई तब भी किसी ने नहीं सोचा था कि ये इतना बड़ा घोटाला होगा।

कितना बड़ा घोटाला था।

इस घोटाले की कीमत 20000 करोड़ रुपए थी। तेलगी उस समय इन पूरे रुपयों की गिनती बोरियों की गिनती से करता था। उन दिनों स्टेंप पेपर सिर्फ नासिक की प्रिंटिंग प्रेस में छपते थे। जिसके लिए कुछ खास तरह को मशीनें प्रयोग में होती थी। जो सरकारी आदेश पर ही विदेश से मंगवाई जाती थी। इनको मंगवाने की प्रक्रिया भी बहुत confidential होती थी। कंपनी भी एक जैसी मशीन दो देशों को नहीं बेच सकती थी। इनमें खास तरह कि सिहाई और Font का इस्तेमाल होता था। इनकी कीमत नोटों जितनी ही थी। लेकिन इनमें नोटों जितने सिक्योरिटी feature नहीं थे।

कौन था अब्दुल करीम तेलगी?

अब्दुल करीम तेलगी कभी रेलवे स्टेशन के पास फल बेचा करता था। इसी फल बेचने वाले तेलगी ने भारत का सबसे बड़ा घोटाला किया। 80 और 90 का दशक जब मुंबई पर अंडरवर्ल्ड का राज था उसी समय अब्दुल करीम की कहानी शुरू हुई।

इसका जन्म कर्नाटक के खानपुर में हुआ था। जिनके पिता रेलवे में छोटे से कर्मचारी थे। जो ईमानदार और मेहनत से रोटी कमाने वाले आदमी थे। जब तेलगी 7 साल के थे तो पिता का देहांत हो गया। अब सारी जिम्मेदारी तेलगी के  कंधों पर आ गई। तेलगी को घर भी चलना था और अपने सपने भी पूरे करने थे। वो काम के साथ साथ स्कूल भी जाता था। बहुत कम उम्र में ही जिंदगी ने तेलगी को पैसे का मूल्य समझा दिया था। अब उसका एक ही ख्वाब था, देश का सबसे अमीर आदमी बनना।

शराब, शबाब और गाड़ियों का उसे बहुत शौक था। उन्हे पाने के लिए वो हर रास्ता अपनाने को तैयार था। वो हमेशा पैसा बनाने के शॉर्ट कट ढूंढता रहता था। उसने बीकॉम की पढ़ाई पूरी की लेकिन उसके बाद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिली। तो तेलगी घर छोड़कर मुंबई आ गया। उसने कई नौकरियां की लेकिन उस रास नहीं आई। उस महीने के अंत में पैसे नहीं चाहिए थे बल्कि उसे हर रोज पैसे चाहिए थे। इसलिए वो कोई ऐसा रास्ता ढूंढ रहा था जो कम समय में ज्यादा पैसे दे। वो मान चुका था कि दुनिया में बिना पैसे के कुछ नहीं मिलता।

सऊदी अरब जाने का प्लान

 तभी उसे किसी ने सऊदी अरब के बारे में बताया। वहां की मुद्रा की किम्मत ज्यादा थी। पैसों कि चमक देख तेलगी ने भी सऊदी अरब जाने का फैसला किया। वहां जाकर भी तेलगी ने अलग अलग जगहों पर कई सालों तक काम किया। लेकिन उस वो नहीं मिला जो वो चाहता था। सात साल सऊदी में काम करने के बाद तेलगी वापिस भारत आ गया। लेकिन इस बार वो पहले वाला तेलगी नहीं था। वो तेलगी भाई बन चुका था। जो मुंबई की गलियों में देश के सबसे बड़े घोटाले को जन्म देने वाला था।

काले धंधे की शुरुआत

सऊदी में उसे पता चला कि कुछ travel agent लोगों को गैरकानूनी तरीके से सऊदी भेजने का काम करते हैं। इसमें कई अधिकारी भी मिले रहते है। अब उसने एक नकली travel एजेंसी खोली और लोगों को गैरकानूनी तरीके से सऊदी भेजा करता था। तो धीरे-धीरे तेलगी की demand बढ़ गई। वो अंडरवर्ल्ड के लोगों को भी गैरकानूनी तरीके से अंदर बाहर भेजता था। तो उसकी अंडरवर्ल्ड में भी काफी जान पहचान हो गई थी। साल 1991 में तेलगी के कई client का वीज़ा रद्द हो गया। तो कई लोगों ने तेलगी के खिलाफ FIR दर्ज करवाई। जिससे 1993 में तेलगी को arrest कर लिया गया। इस दौर में जेल अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर का घर हुआ करता था। वहां उसे अलग अलग प्रकार के लोग मिले।

स्टेंप पेपर घोटाले का idea

उसकी मुलाकात रत्तन सोनी से हुई जो स्टॉक मार्केट froud case में सजा काट रहा था। उसी ने तेलगी को नकली स्टेंप पेपर के बारे में बताया। उसने तेलगी को idea दिया कि स्टेंप पेपर विभाग ऐसा डिपार्टमेंट है जिसपे सरकार ज्यादा ध्यान नहीं देती। साथ ही इनका प्रयोग हर जगह होता है।

कैसे शुरू हुआ स्टेंप पेपर घोटाला।

कुछ महीनों बाद तेलगी जेल से बाहर आ गया और उसने रतन सोनी के साथ हाथ मिला लिया। इसके अलावा तेलगी के साथ संजय गायकवाड़ भी था। जो उसका बहुत खास था। तेलगी के पास अब idea तो था लेकिन इस धंधे को चलाना इतना आसान नहीं था। क्योंकि उसमे प्रयोग होने वाली स्याही सिर्फ नासिक की प्रिंटिंग प्रेस में ही मिलती थी।

नासिक में connection

जेल से बाहर आने के बाद तेलगी ने उस समय समाजवादी जनता पार्टी के नेता अनिल कोटे से सम्पर्क किया। ताकि वो उसकी मुलाकात उस समय के Faineance Minister , विलासराव देशमुख से करवाए। उसके बाद ही तेलगी को मुंबई में स्टेंप पेपर ऑफिस खोलने का लाइसेंस मिला था। वैसे भी ये सब बिना राजनीतिक सहायता से सम्भव नहीं था। और शायद तेलगी को सहायता करने वाले अंडरवर्ल्ड और राजनेता भी नहीं जानते थे कि तेलगी क्या Game खेल रहा है।  खेर पर अब उसके पास license था। वो खुल कर बाज़ार में नकली स्टेंप पेपर बेच सकता था। लेकिन नकली स्टेंप पेपर किसी साधारण मशीन से नहीं छापा जा सकता था।

कैसे आई स्टेंप पेपर छापने वाली मशीन

ऐसे में तेलगी ने अपने contacts की सहायता से नासिक की इंडियन सिक्योरिटी प्रेस से स्टेंप पेपर छापने वाली एक पुरानी मशीन हासिल कर ली। उसने प्रेस के कुछ लोगों से हाथ मिलाया और पैसे के लालच में उन्होंने वो मशीन बिना अलग अलग किए ही बेच दी।

इस बात का कभी खुलासा भी नहीं हो पाया कि प्रेस में कौन से अधिकारी तेलगी के लिए काम कर रहे थे। साथ ही और भी जिस किसी समान कि तेलगी को जरूरत थी वो भी प्रिंटिंग प्रेस से तेलगी को मिल रहा था। अब उसके स्टेंप पेपर भी एक ही तरह के थे बस फर्क इतना था कि नासिक की प्रिंटिंग प्रेस को सरकार चलाती थी और इसे तेलगी।

कैसे फैला तेलगी का धंधा

जल्दी ही तेलगी का ये धंधा महाराष्ट्र के बाहर भी फैल गया। तेलगी ने अलग अलग नाम से बहुत सारे बैंक अकाउंट खोल ताकि उसका पैसा पकड़ा ना जाए। उसके नकली स्टेंप पेपर से नेता से लेकर अंडरवर्ल्ड तक सब अपने गैर कानूनी धंधे चला रहे थे। इस तरह साल 2000 आने तक तेलगी मुंबई में हर्षद मेहता से भी बड़ा स्कैमर बन गया था। एक बार प्रयोग होने के बाद स्टेंप पेपर किसी अलमारी या बॉक्स में पड़े रहते है। इसलिए इसमें पकड़े जाने का रिस्क बहुत कम था। उसका ये धंधा 18 राज्यों में फैल चुका था। उसके नीचे 400 से ज्यादा लोग काम करते थे। उसका ये काला धंधा 11 सालों तक चला। जब तक एक क्राइम रिपोर्टर के पास उसके काले धंधे की फाइल नहीं लगी।

दरियादिली

तेलगी अपने स्टेंप पेपर का प्रयोग करने के लिए Wenders को 20 से 30 प्रतिशत तक कि कमीशन देता था। जबकि सरकार से 3% का ही कमीशन मिलता था। इतने अच्छे ऑफर को कौन मना करता। इस तरह धीरे-धीरे तेलगी के स्टेंप पेपर मार्केट में फैलने लगे। Wenders को लगता था कि ये स्टेंप पेपर भी असली ही हैं, जिन्हें ये चुरा कर लाए हैं। इसलिए कम कीमत पर बेच रहे हैं।

उधर तेलगी ने असली स्टेंप पेपरों को अपने contacts के बल बूते पर गलत पते पर पार्सल करवाना शुरू कर दिया। जिससे मार्केट में स्टेंप पेपर की किल्लत होती तो वो कम कीमत पर अपने स्टेंप पेपर बेचता।

रत्न सोनी का अलग होना

इसी दौरान तेलगी और रतन सोनी के आपस मे झगड़े होने लगे तो। रतन सोनी ने अपना धंधा अलग कर लिया। हालांकि इससे तेलगी को कुछ फर्क नहीं पड़ा। वो इस धंधे से दिन के करोड़ों कमा रहा था। उसके कई कमरे तो पैसे की बोरियों से भरे हुए थे। हां आधे से ज्यादा पैसा वो शराब और Bar में उड़ा देता था। उसके पास हमेशा 2,3 bar Girl भी होती थी। अब तेलगी वो जिंदगी जी रहा था जिसका ख्वाब वो बचपन से देख रहा था। उसकी अय्याशी की वजह से ही वो investigating officers की नजर में आने लगा था। रिपोर्टर उसकी संपति का source ढूंढने में लगे हुए थे।

खानपुर के लोगों का मसीहा

उसने मुंबई और कर्नाटक में ढेर सारी प्रोपर्टी खरीदी। उसने अपने पैसे के दम पर कि राजनेता और नौकरशाह को खरीद रखा था। पुलिस भी उसका कुछ नहीं उखाड़ पा रही थी। उसकी संपति लगभग 500 करोड़ से भी ज्यादा थी। अय्याशी के साथ-साथ वो अपने लोगों को भुला नहीं था। उसने खानपुर के लोगों का भी जीवन संवार दिया था। वहां होने वाली शादी में, या किसी के इलाज के लिए या बच्चों को पढ़ाने के लिए तेलगी दिल खोल के पैसे देता था। इसलिए उसके चाहने वाले बहुत थे।

कौन था जयंत तिनेगर?

कर्नाटक का खानापुर जहां तेलगी का जन्म हुआ था। वहीं के एक आदमी ने तेलगी के इस घोटाले का खुलासा किया। उनका नाम था जयंत तिनेगर । उनकी नजर तेलगी पर तब पड़ी जब तेलगी ने खानापुर की सारी जमीन को मुंह मांगे दाम पर खरीदना शुरू कर दिया।

जयंत ने तेलगी के धंधे पर नजर रखना शुरू कर दिया। उसे तेलगी के आदमियों से पता चला कि तेलगी नकली स्टेंप पेपर का धंधा कर रहा है। उसने पुलिस वालों को बताया, लेकिन उसके पास कोई सबूत नहीं था। तो पुलिस वालों ने नहीं माना।

तेलगी के खिलाफ सबूत

फिर जयंत ने तेलगी के खिलाफ सबूत जमा करने शुरू कर दिए। जिसने उन्होंने अपनी जिंदगी के कई साल बर्बाद कर दिए। वो आम जिंदगी नहीं जी पाए। लेकिन अगर जयंत इस काम को नहीं करते तो पता नहीं तेलगी कब तक इस घोटाले को अंजाम देता रहता। इसी दौरान साल 2000 में 2 आदमी नकली स्टेंप पेपर के साथ पकड़े गए। जिनकी कुल कीमत 9 से 10 करोड़ रूपये थी। इतनी ज्यादा कीमत के स्टेंप पेपर देख के सरकार के होश उड़ गए। इसी case की तहकीकात के दौरान है पहली बार तेलगी का नाम सामने आया।

उधर जयंत भी तेलगी के बारे में बहुत सारी जानकारी इकट्ठा कर चुका था। जिसकी भनक तेलगी के आदमियों को भी लग गई। उन्होंने जयंत को खरीदने कि कोशिश भी की। लेकिन जयंत पीछे नहीं हटे। उन्होंने तेलगी और उसके घोटाले की एक रिपोर्ट बना के मुंबई और कर्नाटक पुलिस को दे दी। साथ ही एक कॉपी क्राइम रिपोर्टर को भी दी। तब से ही तेलगी का बुरा समय शुरू हो गया था। उसने जयंत पर कई हमले भी करवाए। क्योंकि तेलगी कि पहुंच काफी ऊपर तक थी तो पुलिस भी उसका कुछ नहीं उखाड़ पा रही थी।

पुलिस की छापामारी

तेलगी अभी भी खुले आम घूम रहा था। पुलिस से कई जगह छापे मारे लेकिन तेलगी नहीं मिला। पुलिस को खबर मिली कि तेलगी अजमेर जाने वाला है। पुलिस भी वहां पहुंची और रेलवे स्टेशन पर अपनी वेशभूषा बदलकर तेलगी का इंतजार करने लगे। दो दिन तक पुलिस इंतजार करती रही लेकिन तेलगी नहीं आया। अजमेर में बाकी जगहों पर भी छापामारी हुई पर तेलगी नहीं मिला।

अजमेर दरगाह

फिर जब कर्नाटक पुलिस वापिस आने वाली थी तो वो अजमेर दरगाह पर गए शीश नवाने। तभी एक पुलिस ऑफिसर की नजर एक आदमी पर पड़ी। जो चोखट पर शीश नवाज रहा था।  ये चेहरा उसे कुछ जाना पहचाना लगा जो तेलगी से मेल खाता था। confirm करने के लिए पुलिस वाले ने आवाज़ लगाई। ओ लाला, अपना मुंह बोला नाम सुनते ही तेलगी ने पीछे मुड़ कर देखा तो पुलिस को जकीन हो गया। एक पुलिस अधिकारी तेलगी के पास गया और बोला हमारे साथ चलिए। हमें आपसे कुछ बात करनी है। तो तेलगी बोला में जानता था आप मेरे पीछे हैं। मेरी नजर आप पर थी और में बचता रहा। लेकिन आज आप ने मुझे पकड़ ही लिया। अब तेलगी पुलिस के कब्जे में था।

उसने बचने के लिए पुलिस को डेरों लालच दिए। लेकिन इस बार तेलगी कि दौलत उसे बचाने में नाकामयाब रही। उस कर्नाटक ले जा कर बैंगलोर कि जेल में डाल दिया गया। उस गिरफ्तार करते ही सरकारी विभागों और पुलिस की पोल खुलने लगी। कई अधिकारियों को सस्पेंड किया गया। कई नेताओं का नाम सामने आए।

Five-star जेल

लेकिन तेलगी की पहुंच इतनी थी कि गिरफ्तार होने के बाद भी कई बड़े लोग जेल में उससे मिलने आते थे। जेल उसके लिए five star होटल से कम नहीं थी। उसका धंधा बंद नहीं हुआ था। वो जेल के अंदर से ही अपना धंधा सम्भाल रहा था। क्योंकि सिर्फ नेता और पुलिस अधिकारी ही नहीं, कई IAS लेबल के अधिकारी भी इस घोटाले में शामिल थे। जहां तक की दिल्ली से भी पुलिस अधिकारी उससे मिलने जेल में आते थे। अब उसका घोटाला ओर बड़ता गया क्योंकि अब वो जेल से सब चला रहा था।

तभी एक नई महिला DGP आई। उसने जेल में तेलगी की राजा जैसी जिंदगी देखी तो हैरान रह गई। उसने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज की तो दूसरे दिन ही उसका तबादला हो गया। अब धीरे-धीरे ये सब बातें मीडिया तक पहुंची। जिसने कई पुलिस वालों को और अधिकारियों को सामने लाया। अंत में 2003 में इस case को CBI को दे दिया गया।

CBI की जाँच पड़ताल

CBI ने तेलगी का नार्को टेस्ट करने का फैसला लिया। जिससे उस घोटाले से जुड़े कई लोगों के नाम सामने आने लगे। CBI ने उसका फोन भी टैब किया। इससे मिली जानकारी के आधार पर कई बड़े शहरों में छापे मारे गए। जिससे जांच एजेंसी को 3000 करोड़ के नकली स्टेंप पेपर मिले। इसी रिपोर्ट से पता चला कि ये सौदा 30000 करोड़ का था।  

तेलगी बहुत ही शातिर था। इतना की CBI को भी उसका घोटाला सामने लाने में कई वर्ष लग गए। लेकिन वो ये नहीं जानता था कि उसका फोन टैब हो रहा है कई रिपोर्ट बताती है कि इस घोटाले में महाराष्ट्र और कर्नाटक के कैबिनेट मंत्री तक शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट में पेशी और सजा

21 सितम्बर 2005 को अब्दुल करीम तेलगी को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया। इसके 2 साल बाद 2007 में सुप्रीम कोर्ट का final verdict आया। CBI ये साबित करने में कामयाब रही की तेलगी ही नकली स्टेंप पेपर घोटाले का असली मास्टर माइंड था। इसके लिए तेलगी को सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल की सजा सुनवाई। 202 करोड़ का जुर्माना लगाया। बाद में इस सजा को कम कर के 13 साल कर दिया। जब उसे सजा सुनाई तो तेलगी का कहना था कि वो ये जुर्म अपनी पत्नी के कहने पर कबूल कर रहा है। सजा का भी तेलगी पर कोई खास असर नहीं हुआ। जेल में भी उसने नवाबों वाली जिंदगी जी। उसे सजा तो मिली, लेकिन इस घोटाले से भारतीय अर्थव्यवस्था को कई सालों तक उठने नहीं दिया।

कितना बड़ा था घोटाला

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट में इस घोटाले के अलग-अलग नंबर देखने को मिलते है। कुछ रिपोर्ट के अनुसार ये 20000 करोड़ का घोटाला था तो कुछ कहते हैं ये 32000 करोड़ का घोटाला था। लेकिन अगर इस case से जुड़े अधिकारियों की बात मानें तो शायद ये घोटाला इससे भी बड़ा था। तेलगी के नाम के साथ इस घोटाले को शायद इसलिए भी बन्द किया गया। ताकि उन लोगों के नाम बाहर न आ सकें, जिनकी सहायता से तेलगी ने इस घोटाले को अंजाम दिया था।

तेलगी की मौत

साल 2017 में जब अब्दुल करीम तेलगी की मृत्यु हुई। उस समय उसके जनाजे में शामिल होने के लिए 3000 लोग आए थे। जिसने कई नेता, अभिनेता और अधिकारी तक शामिल थे। साल 2002 में जब वो जेल में था तो उसने बताया था कि उसे HIV है। इसी दौरान उसे diabetes भी हो गई थी जो बाद ने बढ़ती चली गई।

जिस समय जेल में उसकी मौत हुई तो उसकी उम्र 56 साल थी। जब उसकी मौत की खबर आई तो सिर्फ उसके परिवार का ही नहीं, उसके पूरे गांव का रो-रो कर बुरा हाल था। वो गरीब लोगों का मसीहा था।

वहीं कुछ experts की माने तो तेलगी सिर्फ एक मोहरा था। जिसके जरिए ऊंचे पदों पर बैठे लोग पैसा कमा रहे थे। हां नकली स्टेंप पेपर का idea तेलगी का ही था। लेकिन वो अकेले ये सब नहीं कर सकता था। 11 साल तक अकेले इस घोटाले को चलाना सम्भव नहीं था। ये तो सच है कि इस कहानी का मास्टर माइंड तेलगी ही था। लेकिन वो सिर्फ अकेला मास्टर माइंड था  ये बात कई लोग नहीं मानते।

आपको क्या लगता है कि सही मायने में गुनहगार कौन था? तेलगी या सरकार की लापरवाही। कॉमेंट करके जरूर बताएं।

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