मोहब्बत
उनकी गोद में सिर रख, सोने के इंतजार में था “शिवा”। वो हम ही से दूर होकर रकीब में हम ही को ढूंढ रहे हैं।।
बिखर कर खुद में, खुद को ही ढूंढ रहे हैं। ख्वाबों में उस मंजर को हम भी ढूंढ रहे हैं।।
उन्हें मिल जाए फिर, कहीं किसी मोड़ पे कोई। हम बस उनकी खुशी में ही खुद को ढूंढ रहे हैं।।
वो दूर होकर है रकीब के साथ ही खुश, तो क्या। हम तो बस मसरूफ होने की वजह ढूंढ रहे हैं।।
उनको मनाने की अब कोशिश भी नहीं करेंगे हम। वो अब हमारी जगह किसी और में हमें ढूंढ रहे हैं।।
उनकी गोद में सिर रख, सोने के इंतजार में था "शिवा"। वो हम ही से दूर होकर रकीब में हम ही को ढूंढ रहे हैं।।
©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
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