क्या लिखूँ ? कुछ याद नहीं
जीवन परीक्षा शुरू हो गयी, मै लिखने में अभी दक्ष नहीं। काँपी राइट जो कर सकूँ, ऐसा मिला है मुझको कक्ष नहीं।। कर नहीं सकता तर्क किसी से, और कोई अपवाद नहीं। क्या लिखूँ? कुछ याद नहीं।।
असहज डरा हुआ सा मेरा, मन चंचल आज परीक्षक है। ना करने दे ताका झाँकी, मेरा हृदय बना निरीक्षक है।। ऐसी घडी में मन हृदय से करता कोई सम्वाद नहीं। क्या लिखूँ? कुछ याद नहीं।।
मुझे अब पछतावा होता है। मन विचलित हो रोता है। सुना था फसल वही काटेगा, तू प्रारम्भ में जो भी बोता है।। समय से नहीं दिया क्यों मैने ? पानी और खाद नहीं। क्या लिखूँ?कुछ याद नहीं।।
उठ जाग मुसाफिर ना देर लगा। अविलंब छोड दे आलस को। निर्दोष जगत को चमका ऐसे, जैसे मिला दिया हो पारस को। विन परिश्रम के भोजन में भी आता कोई स्वाद नहीं। क्या लिखूँ? कुछ याद नहीं।।
✍निर्दोषकुमार “विन”
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