करवा चौथ
हमेशा की तरह महिलाओं का सबसे पसंदीदा त्योहार करवा चौथ समीप है। गली, मोहल्ले से लेकर मेरी सहकर्मियों में भी चाव और उत्साह देखते ही बनता है ।सूट् से लेकर गिफ्ट्स तक की चर्चाएं जोरों पर हैं। गत वर्ष क्या-क्या डिमांड की थी से लेकर इस वर्ष क्या लेंगी तक। सासू मां से पैसे लेने हैं या पतिदेव से सूट लेना है तो कैसा या ड्रेस लेनी है तो कौन सी। मेहंदी लगवानी है तो किससे?
10 साल पहले तक तो मैं भी सब की देखा देखी नया सूट ,चूड़ियां, बिंदी, लाल लिपिस्टिक, नेल पेंट। सब खरीदती थी। पर अब ऐसा कुछ भी करना खुद को दुख पहुंचाने जैसा लगता है। झूठ लगता है। कल भी सभी ने अपनी-अपनी शॉपिंग पर ही चर्चा की। मुझे यह फंडा समझ नहीं आता कि पति आंख उठाकर भी ना देखता हो और तुम लगी हो उसे रिझाने में। क्यों? नये सूट खरीदती हो, पार्लर जाती हो, सजती हो, संवरती हो, सब दिखावा।
कितनी ऐसी औरतें होंगी जो दिल पर हाथ रख कर कह सकें मैं खुश हूं, या बिना किसी दिखावे के व्रत रखती हूं। व्रत रखती तो मैं भी हूं पर अलग तरीके से। कोई सूट, साड़ी नहीं खरीदती। पार्लर नहीं जाती। सजना संवरना तो दूर की बात। बस व्रत रखती हूं, इसलिए नहीं कि पति की आयु लंबी हो, वह दीर्घायु हो। बल्कि इसलिए कि मैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से कर पाई। भगवान का धन्यवाद अदा करती हूं कि उन्होंने मुझे इस दुनिया से लड़ने की हिम्मत दी। मुझे संघर्षों में आगे बढ़ने का हौसला दिया। पति ने तो ऐसा कुछ महसूस ही नहीं कराया कि वह मेरे पति हैं। सिवाय बिस्तर के। वह भी कड़वे अनुभव ही रहे।
खैर अपनी-अपनी सोच है।