स्त्री में कामोत्तेजना
जब औरतें उत्तेजित महसूस करती हैं तो उनके अन्दर कई शारीरिक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। जैसे कि निपल्स, लेबिया और भगशेफ रक्त से भर जाते हैं और अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। यौन उत्तेजना तब होती है जब यौन उत्तेजना के बारे में सोचा भी जाता है और शरीर में महसूस भी किया जाता है।
संवेदनशील अंग
भगशिश्निका (सर्वाधिक संवेदनशील), भगोष्ठ बाह्य एवं आंतरिक, जांघें, नाभि क्षेत्र, स्तन, निप्पल, गर्दन का पिछला भाग, होंठ एवं जीभ, कानों का निचला भाग, कांख, रीढ़, नितम्ब, घुटनों का पृष्ठ मुलायम भाग, पिंडलियां तथा तलवे। स्त्री के इन भागों में कामोत्तेजना अत्याधिक होती है।
कामाग्नि
स्त्री के इन अंगों को कोमलता पूर्वक हाथों से सहलाने से वह शीघ्र ही द्रवित होकर पुरुष से लिपटने लगती है । हाथों एवं उंगलियों द्वारा इन अंगों को उत्तेजित करने के साथ ही यदि इन्हें चुम्बन आदि भी किया जाए तो नारी की कामाग्नि तेजी से भड़क उठती है एवं रति क्रीड़ा के आनन्द में अकल्पित वृद्धि होती है।
कोई अनिवार्य नही है की स्त्री के सभी अंगों को होंठ अथवा जिव्हा से आन्दोलित किया जाए। यह दोनों की परस्पर सहमति एवं रुचि पर निर्भर करता है कि प्रणय-क्रीड़ा के समय किन स्थानों पर होठ एवं जीभ का प्रयोग किया जाए।
प्रणय-क्रीड़ा
ऐसे करने का उद्देश्य यही होता है कि प्रत्येक रति-क्रीड़ा में नर और नारी को रोमांचक आनन्द की उपलब्धि समान रूप से होनी चाहिए। नारी की चित्तवृत्ति सदा एक समान नहीं रहती है। किसी दिन यदि वह मानसिक अथवा शारीरिक रूप से क्षुब्ध हो और रति-क्रीड़ा के लिए अनिच्छा जाहिर करे तो उससे किसी भी प्रकार की मनमानी नहीं करनी चाहिए।
सामान्य स्थिति में भी स्त्री को पूर्णत कामोद्दीप्त कर लेने के पश्चात् ही यौन-क्रीड़ा में संलग्न होना चाहिए।
सम्भोग करना कब उचित है?
स्त्री भले ही सम्भोग के लिए जल्दी मान जाए । पर वह इस क्रिया में जल्द अपना मन नही बनाना चाहती । पुरुष इस बात को जल्दी समझ नही पाते । उनको यह बात समझना थोड़ी मुश्किल होती है।
स्त्री को बहुत कम सम्भोग में आनन्द प्राप्त होता है । स्त्री को जितना आनंद सम्भोग से पूर्व काम-क्रीड़ा, अलिंगन, चुम्बन और प्रेम भरी बातें करने में आता है । उतना संतुष्टी उसे संभोग में नही मिलता है। जब तक दोनों सम्भोग के लिए व्याकुल नही होते तब तक सम्भोग करना उचित नही होता ।
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