महाभारत के अज्ञात तथ्य
महाभारत की रचना
महर्षि वेद व्यास ने महाभारत का संयोजन किया था। इसकी रचना भगवान गणेश जी ने इस शर्त पर की थी, कि महर्षि वेद व्यास बिना एक भी बार रूके लिखे जाने वाले श्लोकों का लगातार उच्चारण करते रहेंगे। फिर वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि वे श्लोकों का अर्थ समझने के साथ ही उसका उच्चारण करेंगे। लेकिन गणेश उन्हें अपने दिमाग में व्याख्या किए बिना नहीं लिखेंगे।
इस तरीके से पूरे महाकाव्य में कभी कभी वेदव्यास कठिन श्लोकों का उच्चारण करते जिसे समझने में गणेश को वक्त लग जाता और उसी समय वेदव्यास थोड़ा विश्राम कर लेते थे।
वेदव्यास नाम नहीं
हाँ जी वेदव्यास नाम नहीं है बल्कि एक पद है जिसे वेदों की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। कृष्णद्विपायन से पहले 27 वेदव्यास थे और कृष्णद्विपायन 28वें वेदव्यास हुए, भगवान कृष्ण के रंग जैसे श्याम वर्ण और द्वीप पर जन्म लेने की वजह से उन्हें यह नाम दिया गया था।
गीता
अजीब, लेकिन सच है कि व्याघ गीता, अष्टावक्र गीता, पराशर गीता आदि जैसी 10 अन्य गीताएं भी हैं। हालांकि श्री भगवद् गीता, भगवान कृष्ण द्वारा दी गई जानकारी वाली शुद्ध और पूर्ण गीता है।
पहली बार महाभारत का पाठ
वैश्यमपायन वेदव्यास के शिष्य, ने राजा जन्मेजय के दरबार में पहली बार महाभारत का पाठ किया था। जन्मेजय अभिमन्यु के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने कई सर्पयज्ञ (सापों की आहुति) किए थे।
विदुर मनुष्य योनी मे क्यों ?
महाभारत में विदुर यमराज के अवतार थे। ये धर्म शास्त्र और अर्थशास्त्र के महान ज्ञाता थे। ऋषि मंदव्य के श्राप की वजह से उन्हें मनुष्य योनी में जन्म लेना पड़ा था।
माता कुंती के पास चमत्कारी मंत्र
कुंती ने अपने बचपन में ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। वे कुंती की सेवा से प्रसन्न हुए और उसे एक चमत्कारी मंत्र बताया, इस मंत्र के माध्यम से कुंती किसी भी भगवान से बच्चा मांग सकती थी। इसलिए, विवाह के पहले कुंती ने सूर्य देव से शिशु की मांग की और कर्ण का जन्म हुआ।
ऋषि किंदम का श्राप
ऋषि किंदम के श्राप की वजह से पांडु ने साम्राज्य छोड़ दिया था और संन्यासी बन गए थे। कुंती और मादरी भी उनके साथ वन में रहने लगीं। यहां दुर्वासा के मंत्र से धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार वायुदेव से भीम, इंद्र से अर्जुन का जन्म हुआ। कुंती ने यह मंत्र मादरी को बताया और सहदेव का जन्म हुआ।
दुर्योधन बना खलनायक
हम सभी जानते हैं कि महाभारत में, दुर्योधन ने चौसर का खेल जीता और युधिष्ठिर से द्रौपदी को दुर्योधन की बाईं जंघा पर बैठने को कहने के लिए कहा। इसी वजह से वह खलनायक के रूप में जाना गया। लेकिन उस समय, पत्नी को पुरुष के बाईं जंघा या बाईं तरफ और पुत्रियों को दाईं जंघा या दाईं तरफ रखा जाता था।
चौसर के पासे
आमतौर पर लोग छह पक्षीय पासे के बारे में जानते हैं। अजीब बात यह है कि जिस पासे से शकुनी ने पांडवों को चौसर के खेल में हराया था, उसके चार ही पक्ष थे और वे पासे किस चीज से बने थे, इसके बारे में किसी को पता नहीं था।
युद्ध मे विदेशी ताकतें
क्या आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल थे। वास्तविक युद्ध सिर्फ पांडवों और कौरवों के बीच नहीं था बल्कि रोम और यमन की सेना भी इसका हिस्सा थी।
अभिमन्यु की मौत का कारण
अभिमन्यु की मौत के लिए चक्रव्यूह की रचना करने वाले सात महारथियों को उसकी मौत का कारण माना जाता है लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र की हत्या की थी, जो सात महारथियों में से एक था। इसी बात से नाराज हो कर दुशासन ने अभिमन्यु का वध कर दिया था।
उर्वशी का अर्जुन को श्राप
क्या आप जानते हैं कि इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया था, क्योकि वह उर्वशी को ‘मां’ कहकर बुला रहा था जिसपर उर्वशी को गुस्सा आया और उसे श्राप दिया कि वह एक हिजड़ा बन जाएगा। इस पर भगवान इंद्र ने अर्जुन से कहा कि यह श्राप एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान तुम्हारे लिए वरदान बन जाएगा और उस अवधि के समाप्त होने पर वह फिर से अपना पुरुषत्व प्राप्त कर लेगा। वन में 12 वर्ष बिताने के बाद पांडवों ने 13वां वर्ष राजा विराट के दरबार में निर्वासन में बिताया। अर्जुन ने अपने श्राप का प्रयोग किया और ब्रिहन्नला नाम के हिजड़े के रुप में वहां रहा।
दुर्योधन ने दिया था अर्जुन को वरदान
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उसके अधूरे वरदान के बारे में याद दिलाया था। जब अर्जुन ने वन में प्रवास के दौरान दुर्योधन की जान बचाई थी तब दुर्योधन ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा था और अर्जुन ने उपयुक्त समय आने पर मांगने की बात कही थी। इसलिए अर्जुन, दुर्योधन के पास गया और उससे भीष्म के मंत्रों से अभिमंत्रित पांच सुनहरे बाण मांग लिए। दुर्योधन ने इन बाणों से पांडवों की हत्या करने की घोषणा की थी।
अर्जुन ने उन पांच सुनहरे बाणों की मांग की तब दुर्योधन भयभीत हो गया लेकिन उसने वचन दिया था। इसलिए उसे बाण देने पड़े। फिर जब अगली सुबह वह भीष्म के पास गया। उनसे पांच सुनहरे बाण ओर मांगे तो वे हंसे और कहा कि अब ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि महाभारत के युद्ध में कल जो भी होगा वह बहुत पहले ही लिखा जा चुका है। कुछ भी बदला नहीं जा सकता।
सत्य का ज्ञात था, दुर्योधन को
दुर्योधन ने भगवद् गीता सुनने से यह कह कर मना कर दिया था कि वह सही और गलत के बारे में जानता है। उसने यह भी कहा कि कुछ शक्तियां हैं जो उसे सही मार्ग चुनने नहीं दे रहीं। अगर उसने कृष्ण की बातें सुनी होतीं, तो युद्ध टाला जा सकता था।
युगों के अनुसार सभी गीताएं उच्चतम कोटि की हैं क्योंकि उस समय में मनुष्य जीवन भजन सिमरन त्याग तपस्या से जुड़ा हुआ था मनुष्य की बुद्धि और विवेक उस महान ज्ञान को समझने योग्य था लेकिन सबसे बाद में रची गई श्रीमद् भागवत गीता आने वाले समय की दूरदर्शिता को ध्यान में रखकर रची गई थी कलयुग में मानव जीवन को सफल बनाने के लिए इससे उच्चतम व्याख्या कोई और नहीं है।
उपासना जी राधे राधे
सही कहा आपने श्रीमद भागवत से उच्चतम किताब इस समय नहीं है। ये हमे निराशा को छोड़ कर बिना फल की इच्छा किये हुए कर्म करने को प्रेरित करती है। कभी भी मन उदास हो या निराश हो श्रीमद भागवत पढ़ लो आप प्रोत्साहित हो जाओगे। बहुत कम लोग भागवत के महत्व को समझते हैं।
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