बच्चे को Genius कैसे बनाएं?

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बच्चे को Genius कैसे बनाएं?

कुछ बच्चे मां बाप को लगता है उनकी नहीं सुनते है।  कुछ गाय की तरह होते है सब कुछ मानते है। आपके बच्चे प्यार से बात करते है या झगड़ते है,  कुछ बच्चे बात बात पे रोते हैं तो कुछ हंसते रहते है। लेकिन एक बच्चा असल में क्या है? वो तब दिखता है, जब वो कुछ करने में व्यस्त होता है। कुछ ऐसा जो वो ना प्रशंसा के लिए कर रहा है, ना टॉफी के लिए, ना डर से।

बच्चों के साथ आपका हर एक वार्तालाप, आपका छोटे से छोटा बरताव, बच्चों पर गहरी छाप छोड़ता है। इन छोटी बड़ी छापों से निकलता हुआ बच्चा बड़ा होता है। इसलिए बच्चों की दुनिया को समझना बहुत ही जरूरी है।

लेकिन ये बच्चे कहीं खो जाते है।  क्लास में प्रथम आने के चकर में, अपने माता पिता को खुश करने के चककर में। कहीं तो मां बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है और कई जगह बच्चों की हद से ज्यादा देखभाल की जा रहीं है। बच्चों के साथ आपका हर एक वार्तालाप, आपका छोटे से छोटा बरताव, बच्चों पर गहरी छाप छोड़ता है। इन छोटी बड़ी छापों से निकलता हुआ बच्चा बड़ा होता है। इसलिए बच्चों की दुनिया को समझना बहुत ही जरूरी है।

मोबाइल दिखाओ खाना खिलाओ

आज कल हर बच्चा खाना खाता है। क्योंकि मोबाइल दिखाकर उनको खाना खिलाया जाता है।  मां, दादी सब खुश है और खुश होने की बजह भी है, क्योंकि बच्चा बिना शरारतें और नखरे किए खाता चला जा रहा है। क्या आपको पता है हमें भूख कब लगती है? जब पेट खाली होता है या खाने की खुशबू आती है।

लेकिन हम अपने बच्चों के मन को training दे रहे है मोबाइल देखते हुए या कार्टून देखते हुए खाना खाने की। अब वो जब भी मोबाइल देखेंगे तो उनका मन बोलेगा खाओ चाहे उसे भूख लगी हो या नहीं। इससे वो हमेशा ज्यादा खायेगा। क्या होगा ऐसे बच्चे के तन और मन को जो टीवी और मोबाइल देखते हुए खाता चला जा रहा है।

मेरा एक दोस्त अपने परिवार के साथ घूमने गया। बीच मे उसका मोबाइल बंद हो गया। फिर जब खाना खाने की बात आयी तो उनके बेटे ने कहा, मोबाइल तो नहीं मैं खाना कैसे खाऊं?  मैं खाना नहीं खा सकता। लेखक के दोस्त को उस समय पहली बार एहसास हुआ, कि उन्होंने क्या कर दिया है। बेटे के मन में मोबाइल और खाने का कैसा रिश्ता बना दिया है?

ये रिश्ता तोड़ना हमारे हाथ में है। हम रोक सकते है। बच्चों से ये आदत छुड़वानी होगी। हो सकता है आपका पहला हफ़्ता बहुत मुश्किल बीते, आपका बच्चा खाना ना खाए। लेकिन वो धीरे धीरे इस बात को फिर समझ जाएगा। अगर आपने एक हफ़्ता निकाल दिया, तो फिर बच्चा धीरे-धीरे समझ जाएगा। इसका ये मतलब नहीं की मोबाइल दिखाना या टीवी दिखाना बिल्कुल बन्द कर देना चाहिए। ये आजकल की जरूरत है। बस मोबाइल दिखाकर खाना खिलाना बन्द कर देना चाहिए।

प्रशंसा के नुकसान

आपका बच्चा कोई पहेली हल कर के आपको दिखाने आया, तो आप ने कहा अरे वाह कितना अच्छा बच्चा है। आप तो बहुत काबिल हो और साथ में बैठे अपने दोस्त को भी बताया। इससे क्या नुकसान हो सकता है?  इससे, आपके बच्चे को लगा कि वह काबिल है। लेकिन जब कल उससे दूसरी पहेली हल नहीं होगी तो उसे लगेगा। उसमें काबिलीयत नहीं है। हालांकि सवाल काबिलीयत का था ही नहीं। सवाल मेहनत का था। काबिलीयत वाला ख्याल तो हमने अपनी प्रशंसा से उसमें डाल दिया। अगर हम बोलते की अरे, मैं तुम्हे देख रहा था। तुम 15 मिनट से इसे हल करने की कोशिश कर रहे थे। बहुत अच्छा! तो बच्चा सीखता की ये उसकी मेहनत या कोशिश का फल है। अगली बार जब वो किसी पहेली पे अटकेगा तो सोचेगा की, ओर मेहनत करनी पड़ेगी। आपने प्रशंसा की, लेकिन काबिलीयत की नहीं, मेहनत की। ये वास्तव में प्रशंसा नहीं प्रोत्साहन है। प्रशंसा और प्रोत्साहन में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। बस आपको क्या लगा ये जरूरी नहीं है। जरूरी है आपको क्या दिखा।

जैसे कि मुझे तुम पर गर्व है। (ये प्रशंसा है)
तुमने बहुत मेहनत की तुम्हें खुद पे गर्व होना चाहिए (ये प्रोत्साहन है)। 
मुझे तुम्हारी चित्रकारी अच्छी लगी (ये प्रशंसा है)। 
अरे तुमने कितने सारे रंगो का प्रयोग किया है,अपनी चित्रकारी में मुझे इनके बारे में ओर बताओ (ये प्रोत्साहन है)। 
मुझे अच्छा लगा कि तुम हमेशा समय पर आते हो(ये प्रशंसा है)। 
तुम हमेशा समय पर आते हो इसलिए हम क्लास समय पर शुरू कर पाते है (ये प्रोत्साहन है)।

आप अपनी आंख बन्द करो ओर इस तरह से सोचो। प्रशंसा की जगह प्रोत्साहन देना आसान नहीं है, प्रैक्टिस की जरूरत है। दोनों के बीच में फर्क कम है मगर जरूरी है। इस बात से फर्क पड़ेगा, कि आपका बच्चा कैसा बनेगा।

ऐसे बहुत सारे उदाहरण है जहां हम प्रशंसा की जगह प्रोत्साहन कर सकते है। कृपया comment बॉक्स में बताएं।

बच्चे की योग्यता को असाधारण बनाया जा सकता है या नहीं?

वैसे तो Genius बच्चे की कोई परिभाषा है नहीं। फिर भी, हम मान लेते है जिसमे असाधारण योग्यता हो वो Genius है। तो क्या हमारे बच्चे की योग्यता को असाधारण बनाया जा सकता है या नहीं? तो आइए बात करते है टेनिस के महान खिलाड़ी अगासी की।

टेनिस के महान खिलाड़ी आंद्रे किर्क अगासी की

अगासी को टेनिस उसके पिता ने बचपन से सिखाया। उन्होंने घर के पीछे एक टेनिस कोर्ट बनाया। फिर उन्होंने एक उपकरण बनाया जो अगासी की तरफ बोल फेंकता था। ताकि अगासी practice कर सके। उन्होंने ये शर्त रखी कि है रोज अगासी 2500 गेंद खेलेगा। अगासी के पिता का मानना था कि को व्यक्ति हर रोज टेनिस की 2500 गेंद खेलेगा, उसको दुनिया में कोई नहीं हरा पाएगा। और ये सच साबित हुआ। अगासी दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी बने। आमतौर पर टेनिस में कोई एक खिलाड़ी एक तरह के मैदान में ही ख्याति प्राप्त करता है। लेकिन अगासी दुनिया के पहले आदमी बने जिन्होंने ग्रास कोर्ट, क्ले कोर्ट, और hard कोर्ट तीनों में grand slam प्रतियोगिता जीती।

i hate tennis

लेकिन अपनी auto biography में अगासी लिखते है i hate tennis  यानि कि, मुझे टेनिस से नफरत है। वो अपने दोस्तो के साथ घूमना चाहते थे। लेकिन उनको टेनिस से फुर्सत ही कहां थी। अगासी नंबर 1 बने।  लेकिन उन्होंने ड्रग्स लेना शुरू कर दी, अपने पापा से बात करना बन्द कर दी, उनका तलाक हुआ और नंबर 1 से वो 141 पायदान पे या गए। ये तब तक चला जब तक उनके मन में टेनिस के लिए नफरत रही।  फिर उन्होंने गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल शुरू किया। उस स्कूल को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने फिर से टेनिस खेलना शुरू किया। मगर इस बार उनके मन में टेनिस के प्रति नफरत नहीं थी, वो दिल से खेल रहे थे। वो फिर से नंबर 1 बने और काफी समय तक नंबर 1 रहे। इससे ये पता चलता है कि आप बच्चे को Genius बना सकते हो । लेकिन उसको Genius बनाएंगे उसकी मर्जी के खिलाफ तो इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते है। तो अब सवाल आता है।  क्या बच्चों की मर्जी के साथ उन्हें Genius बनाया जा सकता है? तो चलो बात करते है लेज़्लो पोलगर की।

लेज़्लो पोलगर

लेज़्लो पोलगर जो कि हंगरी देश के रहने वाले है। उन्होंने कॉलेज में 400 genius लोगों की जीवनियां पढ़ी, और अपने दिमाग में तय कर लिया की किसी भी स्वस्थ बच्चे को genius बनाया जा सकता है। उन्होंने क्लारा नाम की लड़की से शादी की। इनका मानना था कि किसी एक बच्चे को 3 साल से पढ़ाना शुरू किया जाए और 6 साल से प्यार से पढ़ाया जाए और specialisation दी जाए तो कोई भी बच्चा Genius बन सकता है। उनकी पहली बच्ची हुई सुसान पोलगर। उसे किस क्षेत्र में Genius बनाया जाए, इस बारे में उन्होंने बहुत सोचा। और अंततः उन्होंने शतरंज को चुना। लेज़्लो खुद एक औसत दर्जे का शतरंज खिलाड़ी था, लेकिन उसने अपनी बेटी को खेल में विशेषज्ञता विकसित करने में मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सुसान खेल से जुड़ी हुई थी और हर दिन गहन अभ्यास करती थी। उसके बाद उनकी 2 ओर बेटियां हुई उनको भी शतरंज सिखाई। उनकी तीनों लड़कियां Genius बनी।

Genius baby
सबसे जरूरी बात ये थी कि ये तीनों लड़कियां खुश थी उन्होंने शादी की बच्चे किए और अच्छे से रहती थी। उनकी बेटियों का कहना था कि शतरंज उनके लिए एक खेल की तरह रही। उनको खेलने में मज़ा आता था और वो खेलती गई।
 
दोनों किस्सों से ये समझ आता है कि एक बच्चे को मेहनत से Genius बनाया जा सकता है। हां अगर वो मेहनत बच्चे की मर्जी से है तो वो बहुत ही अच्छा है। हां Genius बनने के लिए बच्चे को मां बाप की बात माननी चाहिए। उसके लिए बच्चे को मां बाप पे भरोसा होना जरूरी है। लेकिन क्या मां बाप भरोसे के लायक हैं? 

मम्मी-मम्मी, पापा-पापा

क्या आप भी अपने बच्चों से परेशान हैं? क्या आप भी कुछ काम कर रहे होते है? तो आपके बच्चे बीच मे आकर आपको परेशान करते रहते है। इसका कारण ये है, कि आज कल के घर 2,3 कमरों में सिमट कर रह गए है। बच्चों को खेलने के लिए प्लास्टिक के खिलौने तो बहुत है मगर घूमने फिरने का इधर उधर भागने के लिए जगह नहीं है।

कभी बच्चों को गांव में पक्षियों और जानवरों के बीच ले कर जाओ। उन्हें प्रकृति से रूबरू करवाओ, तो आपको जरा भी तंग नहीं करेंगे। हम में से बहुत से लोग ऐसी जगह रहते है जहां बच्चो को अकेले खेलने नहीं भेज सकते। इसलिए कोई ना कोई बच्चे के साथ चाहिए ही। परिवार छोटे है। बच्चा एक है, पड़ोसी को हम जानते नहीं है। तो ऐसे में बच्चा मम्मी-मम्मी, पापा-पापा करता आपके पीछे ना भागे। तो क्या करे? मेरा ये मतलब नहीं है कि शहर छोड़ कर पहाड़ों में या गांव में चले जाओ। बल्कि में ये बताना चाहता हूं कि बच्चा मम्मी-मम्मी, पापा-पापा क्यों कर रहा है? इस उम्मीद में कि हम उस बच्चे को समझ पाएं। 

खुद पे गुस्सा ना हों और बच्चों पे भी गुस्सा ना करें। अगर आप शहर के छोटे से घर में रहते हैं तो घर में छोटी-छोटी चीजें कर सकते है। जैसे कि घर में स्विंग लगा लो, rock climbing wall लगा लो,  घर में या छत में plantation करें। ताकि बच्चों को खेलने के लिए मिट्टी मिले। बच्चों को घर में गंदगी फैलाने दें,  फिर साफ करने में उनकी सहायता भी लें। उसको चित्रकारी का सामान दें, अलग-अलग किताबें दें। बच्चों को रात को खुला आसमान दिखाएं, तारे दिखाएं। ये हर कोई कर सकता है।  माता पिता, दादा दादी, नाना नानी सब। आप अपने modern घरों को भी जिंदगी से भरपूर बना सकते हैं।

बच्चे का भरोसा

भरोसा एक ऐसी चीज है जो आप अपने और अपने बच्चों के बीच में कभी नहीं खोना चाहोगे। जब तक आपको अपने बच्चे पर भरोसा है और आपके बच्चे को आप पर तब तक चाहे कुछ भी हो जाए। आपका सम्बन्ध बना रहेगा। तभी हम खुल के एक दूसरे से बात कर पाएंगे। लेकिन ये भरोसा हम रोज तोड़ते है। जैसे बच्चे ने जिद कि की मम्मी आइसक्रीम खानी है और आपने बोल दिया कि आज नहीं कल खाएंगे। लेकिन वो कल तब तक नहीं आता, जब तक बच्चे को दोबारा याद न आए। भले ही काफी सारे झूठ बच्चों की भलाई के लिए होते हैं। जैसे कि पापा फोन चाहिए, तो पापा कह देंगे बेटा फोन की बैटरी खतम हो गई है, और फिर 5 मिनट बाद पापा उसी फोन पर दोस्त से बात करते मिलेंगे। इसके 2 नुकसान है।

  • पहला ये की बच्चा सोचता है कि झूठ बोलना ठीक है।  जब जरूरत हो तो बोल दो। फिर बड़ा होते-होते वो कई झूठ बोलने लग जाता है। जैसे बेटा क्या कर रहे थे? पापा में पढ़ाई कर रहा था और वो कोमिक्स पढ़ रहा था।
  • दूसरा नुकसान तो ओर भी बड़ा है। क्योंकि वो भरोसे का है। आप बोलोगे की बेटा पढ़ाई करो आपके लिए अच्छा है हो सकता है उसे लगे आप झूठ बोल रहे हो। बड़े होकर मां बोलेगी, बेटी ये लड़का सही नहीं है। तो वो सोचेगी शायद मम्मी अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोल रही है। वो आप पे भरोसा नहीं करेगी। क्योंकि वो भरोसा आप ने छोटे-छोटे झूठ बोल कर के गवां दिया।
तो करना क्या है?  सच बोलना है। बोलना है कि  बार-बार फोन नहीं देखते है इससे आंखें खराब होती है। रोज आइसक्रीम नहीं खा सकते क्योंकि इससे दांत खराब होते है। अगर वो रो रहा है तो रोने दो। वो देखेगा की मोबाइल नहीं मिल रहा है तो वो शांत हो जाएगा। झूठ बोलना आसान है और सच बोलना मुश्किल। लेकिन सच बोलने के दो बड़े फायदे है। जब हम वजह बताते है तो उसका ज्ञान बढ़ता है। उसकी खुद से सोचने को क्षमता बढ़ती है। वो आपसे सवाल करेगा, की क्यों नहीं दे रहे हो? तो उसको सही उत्तर दीजिए। दूसरा फायदा इससे बहुत बड़ा है हमारी हमारे बच्चों से बातचीत शुरू हो जाती है। असली बातचीत, आइसक्रीम क्यों नहीं खानी चाहिए? मोबाइल क्यों नहीं देख सकते? ये बातचीत चाहे इस समय मुश्किल लगे। लेकिन लंबे समय में ये हमें बच्चों के करीब ले जाती है। आप पर दुनिया में सब से ज्यादा भरोसा आपके बच्चे करते है। तो इस भरोसे को बनाए रखें।

बच्चों की पढ़ाई

ज्यादातर माता पिता इस चिंता में रहते हैं कि कौन सा स्कूल अच्छा है?  कौन सा बोर्ड सही रहेगा? इत्यादि, तो सबसे पहले इस बात पर चर्चा कर लेते हैं कि बच्चों को स्कूल भेजते क्यों है? एक वजह ये भी हो सकती है, कि माता पिता को भी समय चाहिए शायद इसलिए।   एक कारण ये भी हो सकता है। कि सभी बच्चे जाते है। या फिर पढ़ाई करने के लिए। ये सबसे बड़ा कारण हो सकता है या यूं कह लो यही सबसे बड़ा कारण है। बच्चों को स्कूल भेजने का। तो क्या होती है यह पढ़ाई? हम कह सकते हैं कि ये दुनिया का ज्ञान है जो स्कूलों में बताया जाता है।  पर आपको नहीं लगता की आजकल ज्ञान की Importance कम हो रही है? दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। पिछले 50 सालों में क्या से क्या हो गया है। लेकिन पढ़ाने का तरीका अब भी वो ही है। trigonometry पढ़ाई जा रही है।  लेकिन उसका इस्तेमाल कहाँ हो रहा है। सब कुछ याद तो कर लिया जा रहा है। मगर प्रयोग कहाँ होगा? पता नहीं! स्कूल से आकर बच्चे ट्यूशन जा रहे है। खेलने का समय नहीं है। अगर स्कूल में पढ़ाई हो रही है तो ट्यूशन की क्या जरूरत?

मैडम ने स्कूल में खड़े हो कर सब बता दिया, लेकिन किसी ने कुछ पूछा ही नहीं। क्योंकि उनके अंदर वो जिज्ञासा पैदा ही नहीं की। जब बच्चा पैदा होता है, तो वो चलना सीखता है, बोलना सीखता है। आज कल के स्कूल बच्चों में जिज्ञासा ही खतम कर दे रहे हैं।

आप ये बताइए एक उमर के बच्चों को एक क्लास में डालने से क्या फायदा। हम अपनी नौकरी करते हैं तो क्या वहां सब एक उमर के है। एक उमर के बच्चे एक दूसरे से ज्यादा नहीं सीख सकते। लेकिन अगर स्कूल में एक ही क्लास में अलग-अलग उमर के बच्चे हों साथ में, तो वो एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। ऐसे स्कूल ढूंढिए जहां बच्चो को पढ़ाया नहीं सिखाया जाए। जहां वो एक दूसरे से सीखें। मानता हूं ऐसे स्कूल हर जगह नहीं होंगे। लेकिन ऐसे अध्यापक खोजिए जो बच्चों को सिखाने पे विश्वास रखता हो। बच्चों को स्कूल भेजिए मगर ये याद रखिए, कि वो सब कुछ पढ़ने के चक्कर में सीखना न भूल जाए। 
अगर आपको भी लगता है कि सीखना पढ़ने से ज्यादा जरूरी है तो comment करके हमें बताइए।

क्या मार खाने से बच्चा सुधरता है?

काफी लोगों को लगता है बच्चे मारने से सुधर जाएंगे। हम भावनाओं में नहीं जाएंगे, आंकड़े देखते है।

  • 1971 में स्वीडन में एक पिता ने अपनी बेटी को इतना मारा की उसकी मृत्यु हो गई। इस बात पर इतने हंगामा हुआ की 1979 में स्वीडन दुनिया का पहला देश बना, जिसने माता पिता को, बच्चों को मारना बंद कर दिया। जब ये हुआ तो बहुत लोगों ने कहा की बच्चों का पिटना बन्द कर देंगे तो बच्चे बिगड़ जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ आज 40 साल हो गए है। हां स्वीडन में कम हुआ है, तो युवाओं का आत्महत्या करना और नशे करना।

तो हम बच्चों को क्यों मारते पीटते है? शायद आप नहीं मारते होंगे। लेकिन सबसे आम जवाब मिलता है कि बच्चे ने शैतानी की इसलिए। पर उसे प्यार से भी तो समझाया जा सकता है। मारना क्यों है?  इसके दो ही कारण हो सकते है।

  • एक ये कि, मारने वाले का खुद पर नियंत्रण नहीं है। हां बच्चे पालना आसान काम होना चाहिए ! पर है नहीं। अगर आप गुस्से में बच्चे को मार देते हो तो आपको खुद पर ही ध्यान देना है। इस पर बच्चे का कुछ लेना देना नहीं है।
  • दूसरा कारण ये कि आपको लगता हो कि मारने से बच्चे सुधर जाते है, तो पिटाई कर दी। हां पिटाई के डर के कारण उस समय के लिए तो शैतानी रुक जाती है। पर लंबे समय में, उस पर क्या असर हुआ?  क्या बच्चा सुधरता है?  एक study की गई। जिसमें दो तरह के बच्चे लिए एक पीटने वाले ओर एक जिनकी पिटाई नहीं होती थी। दोनों को MRI मशीन में डाला गया और उनको अलग-अलग फोटो दिखाई गई। तो पाया गया को जिन बच्चों की पिटाई होती थी उनका दिमाग धमकी वाली फोटो देख कर ज्यादा active हो गया और वो चिंतित हुए। जिससे ये साबित हुआ की पिटाई का दिमाग पर काफी लंबे समय तक असर होता है।

फिर 1997 में एक दूसरी रिसर्च हुई। जो 6 से 9 साल के बच्चों पे की गई, उससे ये साबित हुआ, कि जिन बच्चों की पिटाई होती है। 2 साल के अंदर उनका बोलचाल असमाजिक हो जाता है।

फिर एक रिसर्चर ने 2016 में बच्चों पे की गई सभी रिसर्च को इकठ्ठा किया तो ये मालूम हुआ। कि मारने के कारण बच्चों में डिप्रेशन, उदास रहना, चिंता, ड्रग और दारू का इस्तेमाल ये सब बढ़ता है। ये क्यों बढ़ता है ? इसकी भी 3 वजह है। पहली है मां पिता के रिश्ते का पिटाई की वजह से कमजोर होना। दूसरा, Cortisol केमिकल का बच्चे के शरीर में बढ़ना। तीसरा, हमारे दिमाग में एक हिस्सा है जो टेंशन से deal करता है, उसका पिटाई के कारण कम होना।

हां आज तक पूरी दुनिया में कोई भी रिसर्च ये साबित नहीं कर पाई, की मारने का कोई भी फायदा है। जब आप बच्चे की पिटाई करते है, तो आप बच्चे को बताना चाहते हैं की ये को आप ने किया है वो गलत है। लेकिन बच्चे को महसूस होता है कि मेरे मां बाप मुझ से गुस्सा है, वो मुझे प्यार नहीं करते।

बच्चों के डर

आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ होगा, कि आपका बच्चा बाहर गली में किसी कुते को छूने लगा हो, तो आपने मना कर दिया होगा। अरे नहीं। ये सब जाने अनजाने में हो जाता है कुछ कूते, बिल्लियों के चक्कर में, कुछ बाहर खेलने जाने के लिए, कुछ मकड़ियों के लिए, कुछ छिपकलियों के लिए। हम अपना डर अपने बच्चों में पास कर देते हैं। कभी-कभी हम किसी चीज से नहीं डरते। लेकिन बच्चों को डरा देते हैं। जैसे अंधेरे से की सो जाओ नहीं तो light बंद कर दूंगी बूत आ जाएगा। छोटे बच्चों पर इसका असर जिंदगी भर रह जाता है। बच्चे को 10 मिनट जल्दी सुलाने के लिए, ये बहुत बड़ा मूल्य है। डर सिर्फ माता पिता से नहीं आता। कभी-कभी डर टीवी या और कहीं से भी आ जाता है।

हां डर सभी को लगता है। किसी के अंदर कोई न कोई डर होता। ये एक इमोशन है। लेकिन बच्चों के दिमाग में बेवजह का कोई डर ना डालें। अगर बच्चा किसी चीज से डरता है तो उसकी सहायता करें। कभी-कभी थोड़ा इंतजार कर के बच्चे को खुद उस डर से उबरने का मौका दें। इससे बच्चा कुछ न कुछ सीखेगा। क्योंकि हमेशा कोई न कोई होगा नहीं, उसकी जिंदगी में।  कई बार उसे बहुत सारे डरों से खुद ही निजात पानी है। हां अगर कभी बच्चा खुद आपको अपने डर के बारे में बता रहा है। तो उस पर हंसे नहीं, न उसका मजाक उड़ाएं और न ही उसके डर को नजरंदाज करें। बच्चे की बात सुने, डर को बढ़ावा न दें। एक आसान प्लान बनाए। अगर बच्चे को कुत्ते से डर लगता है तो पहले किसी छोटे कुत्ते पर उसका डर कम करें। उसमें एक विश्वास पैदा करें। ऐसे-ऐसे प्लान बनाएं और बच्चे के डर को धीरे-धीरे खत्म करें।

आपके बच्चे को किस चीज से डर लगता है इसके बारे में कॉमेंट में लिखें हम बात करेंगे।

बच्चे शैतानी क्यों करते है?

बच्चे शैतानियां कब करते है। जब वो कुछ नया करते है। बचपन में बच्चों के पास जिज्ञासा होती है। उस समय उस पर गुस्सा न करें। अगर आप गुस्सा करेंगे तो बच्चे की जिज्ञासा दव जाएगी। अगर घर गंदा हो रहा है तो कोई बात नहीं साफ हो जाएगा। लेकिन अगर जिज्ञासा मर गई, तो बच्चे का विकास कैसे होगा?

इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं की बच्चे जो चाहें, उन्हे करने दें। बस उनको समझाएं की आपने अच्छी कोशिश की लेकिन ये बहुत सा सामान बिखेर दिया है। चलो इसे  मिलकर समेट देते है और साथ में ये भी बताएं कि उसने जो करने की कोशिश की है, वो सही में होगा कैसे? तो बच्चा कोशिश करने से नहीं डरेगा। उसकी जिज्ञासा बनी रहेगी। तो अगली बार वो कम कचरा फैलाएगा। अब बच्चा क्या करे? उसके हाथ तो छोटे है लेकिन जिज्ञासा बड़ी है। बस चीजों को बच्चों की नजर से भी देखो। इससे हमारा सम्बन्ध हमारे बच्चे के साथ बेहतर बना रहेगा।

गलतियों का सुधार।

आप सब गूगल मैप तो देखते ही होंगे। आप अगर गलत रास्ते पे चले जाते हैं, तो वो आपको डांटता नहीं है। बल्कि एक नया रास्ता दिखा देता है। क्योंकि गूगल मैप का मकसद हमें मंजिल तक पहुंचना है। ना की हमें निराश करना। अब बच्चों से अगर कोई गलती हो जाए, तो हमारा भी यही मकसद होना चाहिए उसे सही रास्ता दिखाएं, उसे डाँटें नहीं। ताकि वो बिना निराश हुए मंजिल तक पहुंचे।

ये जिंदगी का सच है कि सभी गलती करते है। इसलिए धैर्य बनाए रखें। गलतियां पकड़ने के बजाय गलतियों को सुधारें। गलतियां पकड़ेंगे तो बच्चे का मनोबल गिरेगा। लेकिन प्यार से अगर उस गलती को सुधार दोगे तो उसका मनोबल बढ़ेगा। वो अपनी गलतियां तुमसे छिपाएगा नहीं। क्योंकि उसे पता होगा की आप गलती सुधारने में उसकी सहायता करोगे। बस उसके मन में ये ना घर कर जाए की अगर मुझ से गलती हो गई तो अब क्या होगा? इसलिए अपने बच्चों के साथ गूगल मैप जैसा बनें। हां ये कार्य इतना आसान नहीं है।

अगर आपके बच्चों को लेकर कोई सवाल है तो कॉमेंट करके बताएं। हम चर्चा करेंगे।
source : हरप्रीत ग्रोवर की ऑडियो बुक The Curious Parents

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Pooja Devi
Pooja Devi
1 year ago

It helped me alot thanku

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