प्रेम
चाँद के जैसी अठखेली, महबूब मेरा भी करता है। दिल तरसे दीदार को वो, निकले झट छुप जाता है।।
सिवाय उसके दिल को मेरे क्यों और ना कोई भाता है। इसी सोच में सफर रात का, मेरी आँखों में कट जाता है।
जी भर ना दीदार हुआ है बेशक उसका मुद्दत से। लेकिन उसको चाहा है, मैने बड़ी ही शिद्दत से।।
इच्छाओं ने मेरी मुझको, कितनी बार घसीटा है। आशाओं की उपलब्धि में सब्र का फल ही मीठा है।।
दिल से दिल की मनमानी होगी। हर इच्छा आगोश में होगी। दीदार भी होगा जी भर के, एक रोज़ की रजनी एसी होगी
मेरे प्रेम की गाथा यह जग बड़े हर्ष से गाएँगा। चाँद से महबूब संग जब, निर्दोष पार चाँद के जाएगा।।
..✍️निर्दोषकुमार “विन”
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