यह इस देश का बहुत बड़ा ही दुर्भाग्य है कि आजादी का सारा का सारा श्रेय कुछ ही लोगों को दिया गया, जबकि बाकी लोगों के योगदान को पूरी तरह से भूला दिया गया। उन्ही मे से एक नाम है नीरा आर्य। आइए जानते है उस वीरांगना के बारे मे
शुरुआती जीवन
नीरा जी थीं, जिनका जन्म मार्च 1902 में तत्कालीन ‘संयुक्त प्रांत’ (अब उत्तर प्रदेश) में खेकड़ा नगर में एक प्रसिद्ध व्यवसायी सेठ छाजूमल के यहाँ हुआ था। उनके भाई बसंत कुमार आजाद हिन्द फौज मे थे। बचपन से ही उन्हें भी अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। यही कारण थे कि नीरा जी भी आजाद हिन्द फौज मे भर्ती हो गई। वो आज़ाद हिंद फ़ौज में रानी झाँसी रेजीमेंट की एक अविस्मरणीय सैनिक थीं।
वह उस दौरान अंग्रेजी के साथ-साथ बंगाली, हिंदी जैसी कुछ भाषाएं जानती थी और देशभक्ति तो उनमे कूट कूट कर भारी थी। यही कारण थे की उन्हे एक जासूस बनाया गया।
नीरा आर्य ने अपने पति को क्यों मारा?
उनके पिता (सेठ छाजूमल) ने उनकी शादी ब्रिटिश सरकार के लिए एक जासूस (CID) के रूप में काम करने वाले एक जांच अधिकारी “श्रीकांत जयरंजन दास” से की थी। उसके पति को नीरा पर शक हुआ तो उसने नीरा आर्या की जासूसी शुरू कर दी। इस दौरान उनके पति ने जल्दी से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ठिकाने का पता लगा लिया। श्रीकांत ने अपनी गोलियों से नेताजी पर फायर भी किया जो सुभाष चंद्र बोस के ड्राइवर को लगा और नेताजी ने भाग कर खुद को बचा लिया। जब नीरा ने ये देखा तो , उन्होंने मौका मिलते ही अपने पति को मार दिया। पति की हत्या के आरोप में उन्हें काले पानी की सजा सुनाई गई।
काला पानी की सजा
अंडमान (काला पानी) में आजीवन कारावास के दौरान नीरा आर्य को हर दिन प्रताड़ित किया जाता था। वह समुद्र के बीच में एक अज्ञात द्वीप पर यह ही सोचा करती थी कि अब वह स्वतंत्रता आंदोलन में कैसे भाग लेगी? लेकिन वो रुकी नहीं, अपने काम को अंजाम देती रही।
नीरा जी ने लिखा है- “मेरे साथ एक सरस्वती राजमणि नाम की लड़की भी थी जोकि बर्मा की रहने वाली थी और उम्र में मुझसे छोटी थी। हम दोनों ने ब्रिटिश अधिकारियों के घरों पर और सैन्य शिविरों में अंदर घुसने के लिए लड़कों की वेशभूषा अपनाई थी ताकि हम जासूसी कर सकें और नेताजी को जानकारी भेज सकें।” इतनी यातनाएं सहने के बाद भी वो देश के लिए उसी जोश में वो कार्य करती रही, जो नेता जी ने ऊँह सौंपा था।
उनके जैसी अन्य महिलाएँ भी थीं, जो अपनी सजा काट रही थीं क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी।
नीरा की आत्मकथा
नीरा ने एक आत्मकथा भी लिखी है “मेरा जीवन संघर्ष”। जिनके कुछ किस्से आपके साथ साँझा कर रहा हूँ।
वह काला पानी की जेल में महीनों तक ठंड की परवाह किए बिना जमीन पर सोती रही, उसने कोई कंबल नहीं मांगा। आधी रात का समय था, आखिरकार दो गार्ड आए और उन्होंने देखा और उन पर कंबल फेंके। उन्हे यह बुरा लगा। लेकिन ठंड में कंबल मिल गया था। फिर भी, वह परेशान थी क्योंकि उनके गले, हाथ और पैरों में लोहे की सख्त जंजीर बंधी हुई थी।
लौहार पर थूका।
अगले दिन एक लोहार उसके डिब्बे में आया। वह उसके हाथ की जंजीरों को काटने लगा। उसने उसके हाथ का कुछ मांस काट दिया था। उसने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था, जब उसने उसके पैरों से बेड़ियाँ काटनी शुरू कीं, तो उसने उसकी हड्डियों पर 2-3 बार एक भारी हथौड़े से वार किया था। वह दर्द से कराह उठी और उससे बोली। क्या तुम अंधे हो तुमने मेरे पैरों पर 2-3 बार वार किया? उस हथौड़े की चोट से वह कहराह रहीं थी।
लोहार ने कहा कि अगर मैं तुम्हारे सीने भी पर चोट कर दूं तो तुम कुछ नहीं कर सकती। वह जानती थी कि वह वहाँ दासी है। वे जैसा चाहें वैसा व्यवहार करेंगे। उन्हे बहुत गुस्सा आया और गुस्से में, उन्होंने लोहार पर थूका, और कहा, “महिलाओं का सम्मान करना सीखो।
जेलर से संवाद और उनका स्तन काटा गया।
जेलर सब कुछ देख रहा था। उसके पास आया, और पूछा। यदि आप हमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ठिकाने के बारे में बता सकती हैं, तो हम आपको जाने देंगे। तो उसने जवाब दिया, वह एक विमान दुर्घटना में मारे गए हैं और यह बात सभी जानते हैं। जेलर जोर से बोला आप झूठ बोल रही है, वह अभी जिंदा है।
तब जेलर ने फिर उससे पूछा कि यह आखिरी बार है जब मैं तुमसे पूछ रहा हूं,
वह कहाँ है?
नीरा आर्य ने गुस्से में जवाब दिया वह मेरे दिल में है, मेरे दिमाग में है।
ये सुनते ही जेलर झलाते हुए बोला। ”सुभाष चन्द्र जी यदि उसके हृदय में रहते हैं, तो उसे वहाँ से निकाल दो।” जेलर ने उसे अनुचित ढंग से छुआ और सारे कपड़े फाड़ डाले और लोहार से उसके स्तनों को काटने के लिए कहा। लोहार ने तुरंत उसके दाहिने स्तन को काटने के लिए ब्रेस्ट रिपर से दबा दिया। दर्द अपनी सारी हदें पार कर चुका था। आज भी ये किस्सा रोंगटे खड़े कर देता है।हालाँकि, उसने हमारे देश की स्वतंत्रता में योगदान दिया है, उसे वह पहचान नहीं मिली है जो उसे मिलनी चाहिए। खेर, जेलर ने उसकी गर्दन पकड़ ली और कहा कि बहस करती है और वहीं पड़ी चिमटी से भी मारा।
आजादी के बाद का जीवन
बाद मे वह फूल बेचकर गुजारा करती थी लेकिन उसने कोई सरकारी सहायता या पेंशन नहीं ली। उनकी छोटी से झोपड़ी भी तोड़ दी गई क्योंकि वे सरकारी जगह में बनी हुई थी। बीमारी के चलते नीरा की मौत 26 जुलाई,1998 को हैदराबाद में हो गई। इतना कष्ट भरा नीरा का जीवन रहा, लेकिन उन्होंने अंतिम सांस तक हार नहीं मानी। आजादी पाने के उनके प्रयासों से हमारे अधिकांश लोग अनजान हैं। लेकिन उनका संघर्ष उनके लिए नहीं था इस देश के लिए था, हमारे लिए था। इसलिए हमारा ये परम कर्तव्य है कि उनकी इस बलिदान की गाथा को जन-जन तक पहुंचाए और आने वाली पीढ़ियाँ उनकी बहादुरी और देश के प्रति निष्ठा से प्रेरित हो।
“नीरा आर्य” पर फ़िल्म
प्रोड्यूसर विशाल त्यागी उसी किताब पर आधारित सिनेमा बनाने जा रहे हैं। वह कहते हैं “हमने उस पुस्तक के राइट्स लिए हैं और हमारी फ़िल्म नीरा आर्य की किताब “मेरा जीवन संघर्ष” पर बेस्ड सिनेमा होगा।
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