दीवानगी
बनाई थी मैंने जो, उजड़ गया वह ठिकाना सारा।
अब किसके दर जाए यह बेचारा दीवाना प्यारा।।
मुलाकात भी हुई है, हमारी उनसे कई बार मगर।
पहली मुलाकात के जैसे, खो गया दीवाना प्यारा।।
वह तो हमसे, मिलने तक की हसरत नहीं करते।
हम तो सुना पड़े, उनके गली में अफसाना सारा।।
जब उनके जिस्म से, गुलाब की पंखुड़ियां मिली।
मैं उनके ही ख्वाब देख, लुट गया सारा का सारा।।
अगर मेरे बाग़ में, खिले गुलाब सा खूबसूरत फूल।
'शिवा' कर देगा बाग़ तुम्हारे नाम, सारा का सारा।।
अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
Insta:- @Shrivastava_alfazz
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