“गौरा-बादल” की वीरता और पराक्रम की गाथा

"गौरा और बादल" ये दोनों इतने पराक्रमी थे कि दुश्मन उनके नाम से ही कांपते थे। एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था। जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था।।

जब-जब भारत के इतिहास की बात होती हे तब तब राजपुताना के वीरो के लड़े युद्ध और उनकी वीरता के चर्चे आम होते है। आज हम आपको मेवाड़ की पावन धरती पर जन्मे महान वीर, पराक्रमी योद्धा “गौरा-बादल” की वीरता और पराक्रम की सच्ची कथा बताने जा रहे हे। मेवाड़ की पावन धरती धरती हमेशा उनकी कृतज्ञ रहेगी!

गौरा-बादल जीवन परिचय

गौरा और बादल दोनों चाचा भतीजे जालोर के चौहान वंश से सम्बन्ध रखते थे। जो रानी पद्मिनी की विवाह के बाद चितौड़ के राजा रतन सिंह के राज्य का हिस्सा बन गए थे। ये दोनों इतने पराक्रमी थे कि दुश्मन उनके नाम से ही कांपते थे। कहा जाता है कि एक तरफ जहां चाचा गोरा दुश्मनों के लिए काल के सामान थे, वहीं दूसरी तरफ उनका भतीजा बादल दुश्मनों के संहार के आगे मृत्यु तक को शून्य समझता था। यहीं कारण था कि मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने उन्हें अपनी सेना की बागडोर दे रखी थी। लेकिन कुछ कारणों से गोरा बादल राजा से नाराज़ थे और महल छोड़ जंगल में रह रहे थे।

राणा रतनसिंह खिलजी की कैद में।

खिलजी की नजर मेवाड़ की राज्य पर थी लेकिन वह युद्ध में राजपूतों को नहीं हरा सका तो उसने कुटनीतिक चाल चली। मित्रता का बहाना बनाकर रावल रतनसिंह को मिलने के लिए बुलाया और धोखे से उनको बंदी बना लिया और वहीं से सन्देश भिजवाया।

खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया। 
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया।। 
दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया। 
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया।। 
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे। 
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे।। 

रानी पद्मिनी का गोरा और बादल से संवाद

इस तरह के धोखे और सन्देश के बाद राजपूत क्रोधित हो उठे, लेकिन रानी पद्मिनी ने धीरज व चतुराई से काम लेने का आग्रह किया। रानी पहुंची गोरा और बादल के पास जो राजा से रुष्ट चल रहे थे। रानी ने जब उनसे वापिस आने आ आग्रह किया लेकिन वो आने को तैयार नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपमानित होकर दरबार छोड़ा था। तो उनके अंदर क्रोध अभी भी भरा था।

तब रानी पद्मिनी बोलती है:
बोली पद्मिनी समय नहीं है वीर, क्रोध करने का। 
अगर धरा की आन मिट गई। घाव नहीं भरने का।। 
अगर दिल्ली गई पद्मिनी तो पीछे पछताओगे। 
जीते जी राजपूती कुल को दाग़ लगा जाओगे।। 
राणा ने जो कहा, किया माफ करो सेनानी।
ये कह के गोरा के कदमों में झुकी रानी।। 

रानी को अपने कदमों में झुका देख गोरा पीछे हटा और बोला ये क्या कर रही है रानी।

आप महारानी हो शिशोदिया कुल की।
जगदम्बा हो। तुम्हारा शीश न झुकने दूंगा।। 
जब तक गोरा के कंधे पर दुर्ज्य शीश रहेगा।
महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीं कटेगा।। 

पालकी जब दिल्ली पहुंची

रानी ने गोरा-बादल से मिलकर अलाउद्दीन को उसी तरह जबाब देने की रणनीति अपनाई जैसा अलाउद्दीन ने किया था। रणनीति के तहत खिलजी को सन्देश भिजवाया गया कि रानी आने को तैयार है, पर उसकी दासियाँ भी साथ आएगी। सैनिकों से भरी पालकियां दिल्ली पहुँच गई।

जा पहुंची डोलियां एक दिन खिलजी की सरहद में।
उस पर दूत भी जा पहुँचा खिलजी के रंग महल में।।
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है।
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है।।
एक मगर फरियाद फ़क़्त उसकी पूरी करवादो।
राणा रतन सिंह से केवल एक बार मिलवादो।।

खिलजी सुनकर आन्दित हो गया। रानी पद्मिनी की पालकियां आई, पर उनमें रानी की जगह वेश बदलकर गोरा बैठा था। दासियों की जगह पालकियों में चुने हुए वीर राजपूत थे। खिलजी के पास सूचना भिजवाई गई कि रानी पहले रावल रत्नसिंह से मिलेंगी। खिलजी ने बेफिक्र होकर अनुमति दे दी। रानी की पालकी जिसमें गोरा बैठा था, रावल रत्नसिंह के तम्बू में भेजी गई।

अलाउद्दीन खिलजी पर आक्रमण

गोरा ने रत्नसिंह को घोड़े पर बैठा तुरंत रवाना किया और पालकियों में बैठे राजपूत खिलजी के सैनिकों पर टूट पड़े। राजपूतों के इस अचानक हमले से खिलजी की सेना हक्की-बक्की रह गई वो कुछ समझ पाती उससे पहले ही राजपूतों ने रतनसिंह को सुरक्षित अपने दुर्ग पंहुचा दिया, हर तरफ कोहराम मच गया था।

राणा के वहाँ से प्रस्थान करने से पूर्व वीर गोरा, अपने भतीजे बादल से कहते है कि:
राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना।
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना।।
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए ।
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए ।।
यह सुनकर बादल बोले कि –
ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी।
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी।।

खिलजी पर हमला

गोरा और बादल काल की तरह दुश्मनों पर टूट पड़े थे। गोरा खिलजी के तम्बू तक पहुँचा और सुल्तान को मारने ही वाला था, पर सुल्तान अपनी पत्नी के पीछे छिप गया। गोरा एक राजपूत था और राजपूत मासूम महिलाओं को नहीं मारते, इसलिए गोरा ने उस महिला पे हाथ नही उठाया। खिलजी के हजारों सैनिकों के बीच में गोरा जैसे काल बन कर लड़ रहा था। वो जिस तरफ जाता उदर ही हाहाकार मच जाता था। उनके युद्ध वृतांत को किसी कवि ने क्या खूब लिखा है:

खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे। 
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे।। 
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से। 
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से।। 
वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था। 
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था।। 
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें। 
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें।। 

केवल गोरा का धड़ लढा था

जब गोरा पर उनका बस नहीं चला तो, खिलजी के सेनापति ने धोखे से छिप कर उनकी टांग पर तलवार से प्रहार किया। जिससे गोरा लड़खड़ा गया। ये देख सेनापति जफर मोहमद सामने आया। लेकिन घायल गोरा ने उस पर इतना सटीक और जोरदार प्रहार किया  कि वो वहीं धराशाही है गया।

मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था। 
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था।। 
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया। 
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया।। 
मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा। 
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा।। 
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था। 
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था।। 

इस युद्ध में जब गोरा ने खिलजी के सेनापति को मारा था तब तक उनका खुद का शीश पहले ही कट चुका था, केवल धड़ शेष रहा था । यह सब कैसे संभव हुआ इसका वर्णन मैं मेवाड़ के राज कवि श्री श्री नरेन्द्र मिश्र की अत्यंत खूबसूरत कविता के छोटे से अंश से करता हूँ ।

जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा ।
महाकाल से भी राणा का मस्तक नही कटेगा ।।
तुम निशिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी ।
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी ।।
राणा के सकुशल आने तक गोरा नही मरेगा ।
एक पहर तक सर कटने पर भी धड़ युद्ध करेगा।।
एकलिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे ।
महाप्रलय के घोर प्रभंजक भी ना रोक पाएंगे ।।

बादल का कोहराम

गोरा को जब इस हाल में देखा तो बादल खिलजी की सेना पर बिजली बन के टूट पड़ा। उसने दुश्मन सेना के कि सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। एक भाला आ कर उसके पेट मे लगा, जिससे उसकी आंते बाहर आ गई। तो उसने अपने पगड़ी से अपना पेट बांधा और फिर से कोहराम मचा दिया।

बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था। 
मनो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था।। 
ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी। 
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी।। 
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं। 
जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी।। 
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से। 
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से।। 
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी। 
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी।।  
उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था।
और इधर बादल लाशों से भूदल पात रहा था।। 
आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई। 
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई।। 

वीरगति

अंत में वो भी वीरगति को प्राप्त हुए। उनके साथ बाकी सिपाही भी एक एक कर के वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन उन्होंने को युद्ध लडा था उसको देख कर महाकाल भी स्तब्ध खड़ा था।

मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था। 
उनको तो कण कण अरियों के सोन तामे धोना था।। 
अपने सीमा में बादल शकुशल पहुँच गए थे। 
गोरा बादल तिल तिल कर रण में खेत गए थे।। 
एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही। 
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी।। 

गोरा और बादल जैसे वीरों के कारण ही आज हमारा इतिहास गर्व से अभिभूत है। ऐसे वीर जिनके बलिदान पर हमारा सीना चौड़ा हो जाये, उन्हें कोटि-कोटि नमन  मेवाड़ के इतिहास में दोनों वीरों की वीरता स्वर्ण अक्षरों में अंकित है |

गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी। 
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी।। 

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