पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज तृतीय जिन्हें देश पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानता है। पराक्रम और साहस जिनके हथियार थे। दया करुणा जिनके श्रृंगार। पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में माना जाता है। पिता सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे। पृथ्वी राज की मां महारानी कर्पूरादेवी स्वयं एक वीरांगना थीं। जयानक नाम के कश्मीरी कवि द्वारा रचित पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में लिखा है कि उन्हें 6 भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।
चंदबरदाई के लिखे मशूहर महाकाव्य पृथ्वीराज रासो के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान को गणित, मेडिसिन, इतिहास, युद्धनीति, दर्शनशास्त्र, ब्रह्मविद्या और पेटिंग्स में भी महारत हासिल थी। हालांकि उनका सबसे अनूठा कौशल था शब्दभेदी वाण चलाना। यानी सिर्फ आवाज सुनकर अचूक निशाना लगाना।
तराइन की लड़ाई में गौरी की हार
इतिहास का ये गजब का इत्तेफाक है कि 1177 में पृथ्वीराज चौहान के राज्याभिषेक से 4 साल पहले 1173 में मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी गजनी का सुल्तान बना। जिन वर्षों में भारतवर्ष के अंदर पृथ्वीराज अपने अजेय अभियान पर थे उसी दौरान मोहम्मद गोरी अफगानिस्तान और उसके आस-पास के क्षेत्रों को जीतने में जुटा था।
1186 में लाहौर जीतकर गोरी ने सियालकोट के किले पर कब्जा कर लिया। जाहिर है उसकी नजर दिल्ली पर थी। लेकिन पृथ्वीराज चौहान जैसे प्रतापी राजा से सीधे टकराने की हिम्मत वो नहीं कर पा रहा था। लिहाजा उसने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी।
गोरी ने 1 लाख 20 हजार की विशाल सेना के साथ 1191 में दिल्ली की ओर बढ़ना शुरू किया। परमवीर पृथ्वीराज को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने गोरी को रोकने के लिए अपनी विशाल सेना के साथ कूच कर दिया। हरियाणा के तराइन में दोनों विशाल सेनाओं के बीच महासंग्राम हुआ। गोरी की सेना में घुड़सवार थे तो पृथ्वीराज की सेना में हजारों हाथी थे। गोरी की ज्यादातर सेना मारी गई। बचे खुचे सैनिक युद्धभूमि छोड़कर भागने लगे। जख्मी गोरी को पृथ्वीराज की सेना ने अपने कब्जे में ले लिया।
चौहान द्वारा दी गई दया की भीख
पृथ्वीराज के हत्थे चढ़ा मोहम्मद गोरी काफी शातिर था। उसे पता था कि भारत के शूरवीर दया और करुणा के भाव से भी भरे होते हैं। लिहाजा उसने माफी की मांग के साथ कई तरह की कसमें खाईं दिल्ली पर आइंदा नजर उठाकर भी नहीं देखने का स्वांग किया। और यहीं हो गई पृथ्वीराज से इतिहास की सबसे बड़ी भूल। हालांकि उनके दरबारियों ने मोहम्मद गोरी को रिहा नहीं करने के लिए उन्हें बहुत समझाया। लेकिन दया की भीख मांगने वाले को दंड देना उन्हें अनुचित लगा और उन्होंने उसे रिहा कर दिया।
पृथ्वीराज के प्रेम प्रसंग की चर्चा
पृथ्वीराज के प्रेम प्रसंग की चर्चा भी लोगों का दिल जीत लेती है। कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता बला की खूबसूरत थीं। कहते हैं उनके महल में एक बार एक चित्रकार आया जिसके पास दूसरी तस्वीरों के अलावा पृथ्वीराज चौहान की भी तस्वीर थी। पृथ्वी राज की बहादुरी के किस्से तो उन्होंने सुन रखे थे और तस्वीर को देखते ही संयोगिता का दिल उनपर आ गया। मन ही मन संयोगिता ने पृथ्वी राज को पति के रूप में स्वीकार भी कर लिया। उसी चित्रकार ने संयोगिता का भी बेहतरीन चित्र बनाया और उसे ले जाकर पृथ्वीराज चौहान को दे दिया। दिलकश संयोगिता की तस्वीर देखकर पृथ्वीराज चौहान अपनी सुध-बुध खो बैठे। उन्होंने हर हाल में संयोगिता को अपना बनाने का संकल्प लिया।
संयोगिता का स्वयंवर
इसी दौरान जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर का ऐलान किया और दूर देश के राजाओं को भी निमंत्रण भेजा। पर पृथ्वीराज को जानबूझ कर नहीं बुलाया। अलबत्ता उसने महल के बाहर एक दरबान के रूप में पृथ्वी राज का बुत बनाकर खड़ा कर दिया। ताकि उनकी बेइज्जती हो। पृथ्वीराज को सारी कहानी पता चल गई थी। इसलिए वो बगैर किसी को बताए स्वयंवर में पहुंच गए थे। तय कार्यक्रम के मुताबिक संयोगिता वरमाला लेकर आगे बढ़ी लेकिन किसी राजा के गले में न डालकर पृथ्वीराज के बुत के गले में डालने की कोशिश की। पृथ्वीराज अपने ही बुत के पीछे खड़े थे इस तरह वरमाला उनके गले में पड़ गई। ये देख जयचंद आग बबूला हो उठा लेकिन इससे पहले कि वो कुछ करता पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर वहां से निकल गए।
जयचंद का विश्वासघात
चौहान बन्दी बना लिया गया।
गौरी से युध्द के पश्चात पृथ्वीराज चौहान बन्दी बना लिया गया। बाद में चन्द्रवरदाई पृथ्वीराज से मिलने गए। तो उन्होंने देखा कि वहां उन्हे कई यातनाएं दी गयी थी। पृथ्वीराज की आंखो को लोहे के गर्म सरियो द्वारा जलाया गया था, जिससे वे अपनी आखो की रोशनी खो बैठे थे। चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज ने मिलकर एक योजना बनाई। चन्द्रवरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने के कोशल के बारे में बताया तो गोरी की इच्छा हुई उनका कौशल देखने की। सभी इकट्ठे हुए और पृथ्वीराज चौहान को लाया गया और अपना कौशल दिखाने को कहा गया। तभी चन्द्रवरदाई ने योजना अनुसार भरी सभा मे एक कविता पढ़ी।
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान, है मत चूको चौहान !!
ये सुनकर पृथ्वीराज समझ गए उन्होंने इस कविता के आधार पर प्रत्यंचा चढ़ाया और चला दिया तीर। वो तीर सीधे मोहम्मद गोरी के सीने में लगी और वो वहीं ढेर हो गया।
और इसी प्रकार चंदबरदई द्वारा बोले गए दोहे का प्रयोग करते हुये उन्होने गौरी की हत्या भरी सभा मे कर दी। इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर दी। और जब संयोगिता ने यह खबर सुनी, तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया।
दोस्तो पृथ्वीराज चौहान जैसे कई वीर हुए है भारत वर्ष में लेकिन ये इस देश को दुर्भाग्य है कि इस देश का इतिहास अभी भी विलुप्त है। हमारी आप सब से गुजारिश है कि आप ऐसे वीरों के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहें और अपने बच्चों को उनकी गाथा सुनते रहे। ताकि वो भी उसी जोश, हिम्मत और देशभक्ति से भारत को विश्व पटल पर सबसे आगे खड़ा करें। आप उनसे कहें कि
वीरों का स्वाभिमान था। हिन्दुओं का अभिमान था। शब्द वेदी बाण का ज्ञान जिसे वो पृथ्वीराज चौहान था।
पराजित कर सके पृथ्वीराज चौहान को। क्या किसी दुश्मन की इतनी औकात थी? मौहम्मद गोरी इसलिए युद्ध जीत गया। क्योंकि अपनों ने और जयचंदों ने दी मात थी।
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