गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (24 नवंबर)

गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस |

गुरु तेग बहादुर जी 9वें सिख गुरु थे। वह एक कवि, योद्धा और महान विचारक थे जो सिख, मुस्लिम और हिंदू धर्मों के विद्वान भी बने। उनकी समझ की गहराई ने उन्हें एक उत्कृष्ट शिक्षक बनाया।

उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी और उनकी पुण्य तिथि 24 नवंबर को शहीदी दिवस के रूप में मनाई जाती है। उन्होंने बड़े पैमाने पर यात्रा की और भारत के पंजाब में आनंदपुर साहिब (आनंद का शहर) के संस्थापक थे, जिसका सिख समुदाय के लिए धार्मिक महत्व है।

हमलावर सेनाओं से सभी भारतीयों के अधिकारों और जीवन की रक्षा के लिए उनकी शहादत के कारण उन्हें “हिंद दी चादर” (मानवता के रक्षक) के रूप में जाना जाता है।

गुरु तेग बहादुर का जन्म 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में हुआ था। उनका मूल नाम त्याग मल था। वह सख्त आत्म-अनुशासित जीवनशैली जीते थे। अपने पिछले दिनों में, तेग बहादुर ने अपने गुरु भाई गुरदास से गुरुमुखी, भारतीय धर्म और विभिन्न भाषाओं के बारे में सीखा। बाद में, उन्होंने अपने गुरु बाबा बुड्ढा से घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवारबाजी भी सीखी। इसके तुरंत बाद, तेग बहादुर ने 1632 में माता गुजरी से शादी कर ली।

उनका मूल नाम त्याग मल था। जब वह 13 वर्ष के थे, तब उन्होंने एक मुगल सरदार के विरुद्ध युद्ध में अविश्वसनीय वीरता प्रदर्शित की। उन्होंने जबरदस्त तलवार कौशल का प्रदर्शन किया, जिसके कारण उनका नाम तेग बहादुर रखा गया। वह एक आध्यात्मिक अभ्यासी भी थे और उन्होंने अपने लोगों को विभिन्न साहस की शिक्षाएँ दीं। तेग बहादुर, जिसका अर्थ था “तलवार का शक्तिशाली

पूज्य गुरु तेग बहादुर जी...
तारीख:- नवंबर 24, 1675, दोपहर...
स्थान:- दिल्ली का चांदनी चौंक...
लाल किले के सामने... (वर्तमान शीशगंज गुरूद्वारा)

मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे, लेकिन वो बिल्कुल शांत बैठे थे। प्रभु परमात्मा में लीन, लोगो का जमघट, सब की सांसे अटकी हुई, शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी जोर जबरदस्ती के।

गुरु जी का हौसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी, भाई मतिदास और उनके ही अनुज भाई सतीदास को बहुत कष्ट देकर शहीद किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नहीं माने।

औरंगज़ेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था।  समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था।  हाँ या ना पर, सब कुछ निर्भर था।

खुद चलके आया था औरंगज़ेब लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद केकाजी के पास।  उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने का फतवा निकलता था। वो मस्जिद आज भी है। गुरुद्वारा शीशगंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास।

आखिरकार जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल चुकी थी, और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था। ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था। जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिया था।

हर दिल में रोष था, कुछ समय बाद गोविंद सिंह जी ने जालिम को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन किया। समाज की बुराइयों से लड़ाई, जो कि गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी।  अब गुरु गोबिंद सिंह जी ने उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था।  दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।

खालसा की स्थापना तो गुरु नानक देव् जी ने पहले चरण के रूप में 15 शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखरी पड़ाव गुरु गोविंद सिंह जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगो में आत्मविश्वास जगाया और उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद का जो कार्य उन्होंने शुरू किया था वो निर्विघ्न आज भी जारी है। गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की, उनका एहसान भारत वर्ष कभी नही भूल सकता। सुधी जन जरा एकांत में बैठकर सोचें अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान न देते तो…?

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
trackback

[…] गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (24 नवंबर) शहीद दिवस, 23 मार्च 04 दिसंबर, भारतीय नौसेना की सच्ची कहानी। किशोरों को Gym करने के नुकसान ताकि आप एक परफेक्ट मर्द कहलाये जा सको। Gym करने की सही उम्र?? स्त्री में कामोत्तेजना महाभारत के अज्ञात तथ्य कामकाजी औरतें […]

1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x