मैं तुम्हारी पत्नी हूँ
तुम मत भूलो की मैं तुम्हारी पत्नी हूँ एक अर्शे से सुन रही हूँ अशब्द,कठोर ,क्रूर शब्दो का शोर तुम्हारी ही तरह चिल्ला मैं भी सकती हूँ
पर शायद कुछ समय के लिए मेरी ही तरह ,मेरी आवाज के नीचे, तुम्हारी अवाज दब जाएगी पर क्या फायदा।।
तुम्हारी सोच मैं जो स्वार्थ,दिखावा,अपनेपन का ढ़ोग हैं वो थोड़ी ख़त्म हो जायेगा माना मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।।
पर इसका ये मतलब नहीं कि तुमको और तुमसे जुड़े लोगो को ये अधिकार मिल गया है कि मेरा जब चाहे अपमान,तिरस्कार करे।।
कभी रोकर,ताने सुनकर, कभी पीटकर,तो कभी खामोश रहकर मैं फिर भी अपने सारे फर्ज निभाती हूँ खुद को समझाती हूँ।।
आज पतझड़ है,तो कल बहार आएगी टूटे से मन को सांत्वना देती हूँ इसी बीच एक पल जो तुम कभी कभी मुस्कुरा कर मेरी तरफ देख लो, तो मैं सबकुछ भूल भी जाती हूँ।।
पर तुम मत भूलो कि मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।।
मीनाक्षी कौर (नीलतारा)
✍मीनाक्षी कौर “नीलतारा”
लखनऊ