मेजर शैतान सिंह भाटी
हमारे सैनिक भारत मां के सच्चे सपूत हैं जिनका तनमन सदैव देश के लिए समर्पित रहा है। इस की कोख से जांबाज जन्म लेकर मातृभूमि की निस्वार्थ भाव से रक्षा व राष्ट्रभक्ति करते हुए अपना जीवन उत्सर्ग कर देते हैं।
है नमन उस देहरी को जहाँ तुम खेले कन्हैया, घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गए हैं ! है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय, जो धरा पर गिर गए पर आसमानी हो गए हैं...
यह बात है, जब उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड और शरीर को पिघला देने वाली हवाएं चलती है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक चीनी सेना भारत की सीमा में घुस गई। 17 नवंबर 1962 को चीनी सेना और भारतीय सैनिकों का जबरदस्त आमना सामना हुआ। तब एकमात्र ऐसी लड़ाई लड़ी गई जहां भारतीय सैनिकों ने जबरदस्त हमला बोल दिया।
कौन थे? मेजर शैतान सिंह भाटी
लद्दाख के चुशूल इलाके में करीब 16000 फीट की ऊंचाई पर रेजांगला दरे के करीब भारतीय सेना ने अपनी एक पोस्ट तैयार की 120 जवानों की कंपनी कुमाऊँ रेजीमेंट इस पोस्ट की सुरक्षा के लिए तय हुई। जिस की जिम्मेदारी दी गई होनहार नेतृत्व के धनी मेजर शैतान सिंह भाटी को जो राजस्थान जोधपुर में 1 दिसंबर 1924 को जन्मे थे।
चीनी सैनिक घुसे भारतीय सीमा में
सामने से 1300 सैनिक से ज़्यादा थे और मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 120 सैनिक। ऐसी परिस्थिति में सूरमाओं की हड्डी तक काँप जाती है, और वह बर्फीली ठण्ड के कारण नहीं। परन्तु मेजर शैतान सिंह आम सूरमाओं में से नहीं थे। भारत के ऊपर बुरी नजर रखते हुए चीनी सैनिकों ने चुशूल इलाके में डेरा डाल दिया था।
हथियारों की कमी
चीनी सैनिकों को बर्फबारी में रहने का अच्छा अनुभव था जब भारतीय सैनिकों का अनुभव भी कम और साधनों की भी कमी रही थी। भारत के सैनिकों के पास पर्याप्त हथियार नहीं है। इसी बात का फायदा उठा कर चीन के सैनिक भारत की सीमा में घुस गए। मेजर शैतान सिंह ने सीनियर अफसरों से मदद मांगी अधिकारियों ने मदद पहुंचाने में देर लगेगी ऐसा कहा। गोलियां कम थी और ठंडी ज्यादा चीन से लड़ पाना मुमकिन नहीं था।
भारतीय सेना का जोश
18 नवम्बर 1962, सुबह की धीमी रौशनी में जैसे ही चीनी हरकत समझ में आयी। वैसे ही उन्होंने अपने साथियों को ललकारा कि चूसुल की रक्षा में वे निश्चित मृत्यु का आलिंगन कर लें। साथी सैनिकों ने उस ललकार का जवाब देते हुए चीनी हमले का प्रत्युत्तर देने की ठान ली।
युद्ध की गाथा
सामने से दुश्मन ने गोला बारूद भारतीय चौकी पर अन्धाधुन्ध झोंकना शुरू कर दिया। भारतीय सैनिकों के सटीक एवं तीखे प्रत्युत्तर से दुश्मन तिलमिला गया। परन्तु उसे पता था की संख्या में वह अपरिहार्य था। चीन की तरफ से हमले की एक लहर के बाद एक आती रही जिन्हें चीनी तोपों और मशीन गन्स का समर्थन प्राप्त था।
मेजर का जोश
शैतान सिंह अपनी पल्टन की एक चौकी से दूसरी चौकी के बीच भाग भाग कर साथी सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहे, जिस बीच वे गंभीर रूप से घायल हो गए। परन्तु उनका यह पराक्रम देख कर भारतीय सैनिकों में ऊर्जा एवं साहस का संचार हुआ और उन्होंने चीन के हमलों की कई लहरों को निष्फल कर दिया।
जवानों की गोलियाँ भी समाप्त हो गयीं
उधर चीन भारत के अनापेक्षित प्रतिरोध से बौखला रहा था। मुट्ठी भर भारतीय सैनिक जिस प्रकार क्षति पहुँचा रहे थे उससे चीनी सैनिकों का मनोबल क्षीण हो रहा था। भारत के हर सैनिक की वीरगति के बदले चीन के 5 सैनिक काल के गाल में समा रहे थे। परन्तु जैसा कि उस युद्ध में कई बार हुआ, लगातार हुए हमले से हमारे जवानों की गोलियाँ भी समाप्त हो गयीं। तब उन्होंने अपनी चौकी से निकल कर चीनी सेना से हाथों से ही लड़ना शुरू कर दिया।
दबंद्ध युद्ध
फिर भी दस-दस चीनी जवानों से एक एक जवान ने लोहा लिया और केवल 120 भारतीय सैनिकों ने दो हजार चीनी सैनिकों को धूल चटा दी इस तरह मेजर शैतान सिंह ने बहादुरी से अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। अंततः 120 में से 114 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। 5 को बंदी बना लिया गया और एक सैनिक को मेजर शैतान सिंह ने आदेश दिया कि वह अपने प्राण बचा कर भारतीय खेमे को अपने साथियों के असाधारण वीरता के बारे में बता पाए।
यह देखकर कवि प्रदीप ने उनके लिए कहा कि…
शैतान सिंह का बलिदान
मेजर शैतान सिंह खुद कंपनी की पांचों पलटन तक पहुंच कर अपने जवानों का हौसला बढ़ाते रहे थे। इसी बीच गोलियां लगने से वह बुरी तरह जख्मी हो गए थे, तब जवानों ने उन्हें उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया।
मेजर शैतान सिंह ने अंतिम दम तक युद्धभूमि छोड़ने से मना कर दिया। एक चट्टान के पीछे उनका जमा हुआ पार्थिव शरीर मिला जिसने तब भी अपनी बन्दूक जकड़ी हुई थी।
कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह की शहादत के बावजूद रेजीमेंट के बचे हुए जवानों ने चीन के आगे घुटने नहीं टेके। भारतीय सैनिकों की बहादुरी के आगे चीन कभी भी चुशूल में कब्जा नहीं कर पाया। उस बर्फबारी से ढके रण क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर ३ महीने बाद मिला।
परमवीर चक्र
मेजर शैतान सिंह को उनके अदम्य साहस, अभूतपूर्व नेतृत्व एवं दृढ़संकल्प के लिए परमवीरचक्र से अलंकृत किया गया। उनके साथियों ने 5 वीरचक्र, और 4 सेना पदक अर्जित किये। यह थी रेज़ांगला की वह वीरगाथा जो भारतीय सेना की वीरता की परम्परा परिभाषित करती है।
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