मसला कुछ भी नहीं हमारे दरमियान
आज हालात इतने बिगड़े है कि घर को घर नहीं, मैदाने जंग बना रखा है
मैंने मुस्कुराहटो का घर-बार सजा रखा है उसने भी इल्ज़ामो का दौर बरक़रार रखा है मसला कुछ भी नहीं हमारे दरमियान ये जो होते है न,आस्तीन के साँप इन्होने मेरे घर की,दरों-दीवारों को,हिला रखा है कभी-कभी ऐसा भी होता है खामोशिया शोर मचाती है चिल्लाती है,झुंझलाती है पर क्या करे जनाब! एक बोले भी तो दूसरे ने,कठोर मौन व्रत ले रखा है सोचती हू एक वो भी दौर था वाकिफ थे एक दूसरे से इस कदर जैसे सामने रखा कोई आइना, आज हालात इतने बिगड़े है कि घर को घर नहीं, मैदाने जंग बना रखा है।।
[…] खड़ी है फिर से मसला कुछ भी नहीं हमारे दरमियान हिन्दु मासिक धर्म (Periods) नीरा आर्य […]