भारतीय सेना द्वारा कई बड़े सैन्य अभियानों को अंजाम दिया गया है, जिसमें 1971 की लड़ाई, कारगिल युद्ध, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे अनेकों नाम शामिल हैं। इन्हीं में से एक नाम आता है ‘ऑपरेशन पवन’ (Operation Pawan) का जिसे श्रीलंका की धरती पर अंजाम दिया गया था। मेजर रामास्वामी परमेश्वरन भी इसी ऑपरेशन का हिस्सा थें।
ऑपरेशन पवन
दरअसल भारत और श्रीलंका के बीच 29 जुलाई 1987 को एक शांति समझौता हुआ था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य था श्रीलंका में जारी गृहयुद्ध को ख़त्म करना। भारत और श्रीलंका के बीच हुए इस शांति समझौते के तहत भारतीय शांति सेना यानि इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स (IPKF) 30 जुलाई 1987 को श्रीलंका पहुंची। इस ऑपेरेशन का कोड नेम “ऑपरेशन पवन” रखा गया।
यह ऑपेरेशन श्रीलंका में 1987 से 1990 तक चला। इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स जैसे ही अपने तय समय पर श्रीलंका पहुंची तो उन्हें कई मोर्चो पर ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम’ यानि (LTTE) का सामना करना पड़ा।
परमवीर योद्धा मेजर रामास्वामी परमेश्वरन
हमारे देश के सैनिकों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए ना सिर्फ अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है बल्कि जरूरत पड़ने पर दूसरे देशों में भी शांतिबहाली में अपनी अहम भूमिका निभाई है। विदेश की धरती पर शांति स्थापित करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले ‘ऑपरेशन पवन’ के परमवीर योद्धा मेजर रामास्वामी परमेश्वरन; जिन्होंने 5 आतंकियों को किया था ढेर और अपने लहू के आखिरी कतरे से लिखी थी बहादुरी की दास्ताँ।
आतंकियों का हमला
13 सितंबर 1946 को जन्में मेजर परमेश्वरन को भारतीय सेना की प्रसिद्ध महार रेजिमेंट के 15वें बटालियन में नियुक्त किया गया था जहां उन्होंने 8 साल तक अपनी सेवाएं दी। 24 नवम्बर 1987 उनकी बटालियन को सुचना मिली कि जाफ़ना के उडुविल शहर के पास मौजूद एक गाँव में भारी मात्रा में गोला बारूद उतारा गया है। मेजर रामास्वामी ने अपने दल के साथ उस घर की पहचान कर उसे चारो तरफ से घेर लिया। 25 नवम्बर की सुबह घर की तलाशी ली गई लेकिन कुछ नहीं मिला। मेजर रामास्वामी जब इस तलाशी अभियान से लौट रहे थे, तभी उनकी टुकड़ी पर आतंकियों के एक समूह ने घात लगाकर हमला कर दिया। परंतु अपने तेज और चतुर दिमाग से उन्होंने आतंकियों को पीछे से घेर लिया और आतंकियों पर हमला कर दिया। इस हमले से आतंकी पूरी तरह से अचंभित हो गए।
5 आतंकियों को उतारा मौत के घाट:
आतंकियों के साथ आमने सामने की इस लड़ाई में एक आतंकवादी ने मेजर रामास्वामी के सीने में गोली मार दी। गोली लगने के बावजूद निडर मेजर रामास्वामी ने आतंकवादी से उसकी राइफल छीन ली और उसे गोली मारकर वहीं ढेर कर दिया। गोली लगने के कारण गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अपने बटालियन को आदेश देना जारी रखा और अपनी अंतिम सांस तक वो आतंकियों का मुकाबला करते रहे।
मेजर रामास्वामी ने अपनी साहसिक कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद 5 आतंकवादियों को मार गिराया। इस युद्ध में मेजर रामास्वामी परमेश्वरन ने अपनी विशिष्ट वीरता और प्रेरक नेतृत्व का परिचय देते हुए आज ही के दिन यानि 25 नवंबर को वीरगति को प्राप्त हो गए।
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
मेजर रामास्वामी परमेश्वरन को उनकी वीरता एवं नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भारत माँ के ऐसे अमर बलिदानी सपूत परमवीर चक्र विजेता मेजर रामास्वामी परमेश्वरन के बलिदान को हमारा नमन।
शुरुआती जीवन
मेजर परमेश्वरन का जन्म महाराष्ट्र में 13 सितंबर 1946 को हुआ था। उनके पिता का नाम के एस रामास्वामी और माता जी का नाम जानकी था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा मुंबई के ‘South Indian Education Society’ से की थी। इसके बाद उन्होंने SIES कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर वे चेन्नई के OTA (Officers Training Academy) में शामिल हो गए और 16 जून 1972 को वहां से पास आउट हुए। वहीं, 1981 में मेजर परमेश्वरन शादी के बंधन में बंधे उनकी पत्नी का नाम उमा है। मेजर परमेश्वरन को भारतीय सेना की प्रसिद्ध महार रेजिमेंट के 15वें बटालियन में नियुक्त किया गया था और वहां उन्होंने 8 साल तक सेवा की।
ऑपरेशन पवन में 1200 सैनिक वीरगति को हुए थे प्राप्त
श्रीलंका तमिल देश की मांग करने वाले आतंकी संगठल ‘लिब्रेशन ऑफ तमिल टाइगल इलम’ यानि लिट्टे के अत्याचार से जूझ रहा था। उस वक्त भारतीय सेना ने श्रीलंका में जारी इस गृहयुद्ध में राहत पहुंचाई थी। भारतीय शांति दल यानि इंडियन पीसकीपिंग फोर्सेज ने यहां पर चलाए ऑपरेशन में न केवल श्रीलंका को स्थिरता दी बल्कि लिट्टे के आतंकियों को भी घुटने टेंकने पर मजबूर कर दिया। ऑपरेशन पवन को भारतीय सेनाओं के लिए अब तक का सबसे चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन करार दिया जाता है। इस ऑपरेशन भारतीय सेना के 1200 सैनिक शहीद हुए थे और करीब 3000 सैनिक घायल हुए थे।
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