हौसला बेमिसाल रखती हूँ

"मीनाक्षी कौर" द्वारा रचित कविता "हौसला बेमिसाल रखती हूँ ", बचा कुछ नहीं ,सब टूटा-टूटा बिखरा है फिर भी न जाने क्यों,उसे दिल से लगाए रखती हूँ।

हौसला बेमिसाल रखती हूँ

बचा कुछ नहीं ,सब टूटा-टूटा बिखरा है  फिर भी न जाने क्यों,उसे दिल से लगाए रखती हूँ।

हाथ में रौशनी का छोटा सा दीया रखती हूँ 
बोलती कुछ नहीं,पर हौसला बेमिशाल रखती हूँ। 
उसके झूठ,फरेब,बेवफाई,मनमर्जियो को,
आज भी सर-माथे से लगा रखा है। 
आसान नहीं है पर देखो!
हुनर अपने अंदर कमाल का रखती हूँ।  
बचा कुछ नहीं ,सब टूटा-टूटा बिखरा है 
फिर भी न जाने क्यों,उसे दिल से लगाए रखती हूँ। 
एक रोज़ कर बैठा मुझे मारने की साजिश,
कितना नादा है जानता ही नहीं!
मौत का मुझे ,न खौफ है न कोई डर, फिर भी जिन्दा रहना है!
ये भ्रम उसकी नज़रो मे बनाये रखती हूँ। 
खुद तो बन बैठा है वो, किसी और के हाथ की कठपुतली 
इस लिए जनाब,खुद को मै ऐसे रंगमंच की दुनिया से दूर बहुत दूर रखती हूँ। 

मीनाक्षी कौर (नीलतारा)

हिन्दी कवियित्री

✍मीनाक्षी कौर “नीलतारा”

लखनऊ

मीनाक्षी कौर
मीनाक्षी कौर
Articles: 4
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
trackback

[…] हौसला बेमिसाल रखती हूँ मसला कुछ भी नहीं हमारे दरमियान  प्रतीक्षा […]

1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x