हौसला बेमिसाल रखती हूँ
बचा कुछ नहीं ,सब टूटा-टूटा बिखरा है फिर भी न जाने क्यों,उसे दिल से लगाए रखती हूँ।
हाथ में रौशनी का छोटा सा दीया रखती हूँ बोलती कुछ नहीं,पर हौसला बेमिशाल रखती हूँ।
उसके झूठ,फरेब,बेवफाई,मनमर्जियो को, आज भी सर-माथे से लगा रखा है।
आसान नहीं है पर देखो! हुनर अपने अंदर कमाल का रखती हूँ।
बचा कुछ नहीं ,सब टूटा-टूटा बिखरा है फिर भी न जाने क्यों,उसे दिल से लगाए रखती हूँ।
एक रोज़ कर बैठा मुझे मारने की साजिश, कितना नादा है जानता ही नहीं!
मौत का मुझे ,न खौफ है न कोई डर, फिर भी जिन्दा रहना है! ये भ्रम उसकी नज़रो मे बनाये रखती हूँ।
खुद तो बन बैठा है वो, किसी और के हाथ की कठपुतली इस लिए जनाब,खुद को मै ऐसे रंगमंच की दुनिया से दूर बहुत दूर रखती हूँ।
मीनाक्षी कौर (नीलतारा)

✍मीनाक्षी कौर “नीलतारा”
लखनऊ
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