मेरे अल्फ़ाज़
गढ़ते हैं बड़ी मुद्दतों से अल्फ़ाज़, मगर पढ़ता कौन है।
पढ़ी उसने एक नज्म, उसकी तरह मुझे पढ़ता कौन है।।
उन्होंने पढे हमारे अल्फ़ाज़ और दीवानी हो गई।
अब हमारे अल्फ़ाज़ को, तुम्हारी तरह पढ़ता कौन है।।
लिख दूं अगर कुछ ग़लत, तो सबको गलतियां दिख जाती हैं।
मेरी अल्फ़ाज़ में छुपे हुए जज्बात, आखिर देखता कौन है।।
छुपे थे सालों से जो राज, उसका आगाज होने वाला था।
इश्क़ की नगरी है जनाब, यहां बेवजह रोकता कौन है।।
तुम्हारी बस एक बात से, गंभीर हो जाता है “शिवा”।।
आखिर यहां, अल्फ़ाजों की गहराईयों में उतरता कौन है।।
[…] मेरे अल्फ़ाज़ ढूंढ़ रहा हूं अपना गांव उठ खड़ी है फिर से मसला कुछ भी नहीं हमारे दरमियान आईना गर्ववस्था की समस्याएं और सेक्स […]