सोचा कुछ अच्छा किया जाए पर कहां दुनिया से दूर जाया जाए।
नारी की व्यथा
रिसने लग रहा है आंखों की कोरों से, फिर से एक छुटकु सा सपना, चाहती हूं समेटना, पर फुर्सत कहां इतनी।
मिट जाने दिया उसे भी आंचल की गरमाई में, जिम्मेदारियों का बोझ उठाना है। चलो कुछ नया पकाना है ,
सोचा कुछ अच्छा किया जाए, पर कहां दुनिया से दूर जाया जाए। संस्कार व्यवहार की बेड़ियां है , कभी ना जुड़ने वाली कुछ कड़ियां हैं।
देहदान का निश्चय भी आज मन में ठहर गया, अपनी इच्छा का सम्मान फिर से जैसे ढह गया। ना जीना बस में, न मरना।
स्त्री होना धन्य है, पर फिर भी स्त्री ना बनना पर फिर भी स्त्री ना बनना।
दीपा गोमी

[…] नारी की व्यथा मेरा जन्मदिन उठ खड़ी है फिर से […]
[…] नारी की व्यथा हौसला बेमिसाल रखती हूँ यार मैं गलती करता हूँ […]