अध्यापक दिवस
अध्यापक- दिवस की सार्थकता तभी है, जब आप किसी एक छात्र की सोच या सुधारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हो पाए हों।
सुबह से ही नये, पुराने, बहुत पुराने, छात्र/ छात्राओं के संदेश आने प्रारंभ हो चुके थे। सभी अध्यापकों को आते ही हैं। बस किसी को कम किसी को ज्यादा आते हैं। प्रत्येक वर्ष इस दिन बड़ा सुखद अनुभव रहता है। जब वह सब याद करते हैं।
कैसे बच्चों को बोर करती?
आज का अध्यापक- दिवस एक अलग सी शांति और प्रसन्नता दे गया । इतनी प्रसन्नता कल श्रेष्ठ अध्यापिका अवार्ड से भी नहीं हुई थी। मेरी द्वादश कक्षा के कुछ छात्रों का समूह जिन्हें मैं शायद ही कभी अच्छी लगी, 😊क्योंकि कक्षा अध्यापिका होने के कारण उन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित रखना पड़ता था। प्रथम कालांश वह भी राजनीति विज्ञान का। बहुत प्रयास करती थी। अपना विषय रुचिकर लगवाने हेतु। कभी अपने उदाहरण, कभी कोई घटना ,कभी सम-सामयिक पहलू । जीवन वृतांत। कभी किसी का चेहरा उदास दिखता तो पास जाकर पीठ थपथपाती। घर -परिवार के बारे में पूछती। मतलब उनको पूरी तरह बोर करती।
कैसे बच्चे टांग खींचते?
😂जानती थी, जब भी मैं उन्हें कोई नसीहत या कोई घटना सुनाती हूं वह मेरी टांग खिंचाई करते हैं। उनका जन्मसिद्ध अधिकार जो ठहरा। फिर भी मैं मुस्कुरा कर बात पूरी जरूर करती।
प्रसन्नता का पारावार
आज उम्मीद नहीं थी कि उनमें से कोई विश करेगा, किंतु ऑनलाइन संदेशों से लेकर फोन कॉल तक करने का जो सिलसिला शुरू हुआ। मैं बता नहीं सकती। हैरानी मिश्रित प्रसन्नता का पारावार न था। आज स्वयं पर थोड़ा गर्व हुआ। मैं सही थी। ठीक तरह से उनके दिलों में जगह बना पाने में। चाहे थोड़ी ही सही, पर सुकून था। उनको आज का दिन और मैं याद रही, बहुत बड़ी बात है। ग्रामीण परिवेश और संसाधन हीन पारिवारिक संघर्षों से जूझते इन छात्रों का भविष्य उज्जवल हो बस यही कामना है।🙏😊