महेश कुमार द्वारा रचित कविता “रुतबा” जो आपके लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
रुतबा
गुमनाम हूँ मैं बेनाम नहीं
लो आज से अपनी पहचान यही
एक शांत सुबह का साग़र हूँ
कल उठेगा जिसमें तूफ़ान कही।
तू मुस्कुराले चाहे जितना
मैं पसीनें से प्यास बुझाऊंगा
बनेगा छाला मोती जिसदिन
मैं उसदिन नायब कहलाऊंगा।
हर सोच में मौज के रंग समाये
हुए जन्म-जात से लोग पराये
बादल से निकली रिमझिम बरखा
आँख का पानी आँसू कहलाये।
संगीत है साधक सारथी मन का
अफवाहों में क्या रखा है?
दिन ढलने पर ख़ामोशी सुनना
की कैसे हर सूर सजता है।
महेश कुमार हरियाणवी उर्फ (M K Yadav)
हरियाणा (भारत),